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सामायिक का महत्त्व ५ इस प्रकार श्रुत सामायिक ज्ञान स्वरूप एवं चारित्र सामायिक सम्यक क्रिया स्वरूप है।
सामायिक में रत्नत्रयी, तत्त्वत्रयी, पंच परमेष्ठी, षड् आवश्यक, पंचाचार, पंच महाव्रत और अष्ट प्रवचन माता तथा दस यतिधर्म आदि समस्त मोक्ष-साधक सदनुष्ठान संग्रहीत हैं। इस कारण ही 'सामायिक' को अत्यन्त विशाल, गम्भीर एवं सर्व धर्म-व्यापी मानी गई है।
सामायिक शाश्वत है, क्योंकि
नमस्कार महामन्त्र के द्वारा 'करेमि भन्ते' सूत्र का उच्चार करने से सामायिक की प्रतिज्ञा पूर्ण होती है और समस्त कालों में, समस्त क्षेत्रों में प्रत्येक तीर्थंकर परमात्मा भी इस सूत्र के द्वारा ही सर्वविरति अंगीकार करते हैं।
___सामायिक श्रुतज्ञान है, चौदह पूर्व का सार है तथा उसका बीज ख्वरूप है। ___शब्दों के परिणाम से यह अल्पाक्षरी है, फिर भी अर्थ से यह अत्यन्त विशाल एवं गम्भीर है। समग्र द्वादशांगी का अर्थ इसमें समाविष्ट है।
सामायिक समस्त गुणों में व्याप्त है। समस्त गुणों का, समस्त महाव्रतों का आधार सामायिक है । समता भाव के बिना ता समस्त अनुष्ठान निरर्थक, निष्फल माने जाते हैं।
आज तक जो पुण्यात्मा मोक्ष गये हैं, जा रहे हैं, और जायेंगे वह सब सामायिक धर्म का ही अकल्पनीय प्रभाव है। सामायिक सूत्र में छहों आवश्यकों का निर्देश
षड् आवश्यकों का मूल सूत्र सामायिक सूत्र (करेमि भन्ते) है जिसमें छहों आवश्यक गभित रूप में निहित हैं, वे इस प्रकार हैं
(१) 'सामाइयं' पद 'सामायिक आवश्यक' को सूचित करता है।
(२) प्रथम 'भन्ते' पद से 'चतुर्विशतिस्तव आवश्यक' सूचित होता है।
(३) द्वितीय 'भन्ते' पद से 'गुरु वन्दन आवश्यक' सूचित होता है। (४) 'पडिक्कमामि' पद 'प्रतिक्रमण आवश्यक' का सूचक है।
(५) 'अप्पाणं वोसिरामि' पद के द्वारा 'कायोत्सर्ग आवश्यक' ज्ञात होता है।
(६) 'पच्चक्खामि' पद 'पच्चक्खाण आवश्यक' को सूचित करता है।
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