________________
१३४ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म समग्र मोक्षमार्ग का (समापत्ति) समाधि में समावेश
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र ही मोक्षमार्ग है। समग्र मोक्ष-साधक सदनुष्ठानों का समावेश इस रत्नत्रयी में है। इस सम्यग्-रत्नत्रयी के द्वारा क्रमानुसार विशुद्ध विशुद्ध समाधि (समता) प्राप्त होती होने से इसे 'दर्शन-समाधि", "ज्ञान-समाधि", एवं 'चारित्र-समाधि" भी कहते हैं ।
___कर्म के क्षय, क्षयोपशम अथवा उपशम की अपेक्षा से समाधि के अनेक भेद होते हैं, तो भी उन सब भेदों का समावेश दर्शन आदि तीन समाधियों में हो जाता है।
दर्शन-समाधि-सम्यग्-दर्शन की प्राप्ति के समय जो आनन्द, सुख, समता और शान्ति का अनुभव होता है वह "दर्शन-समाधि" कहलाती है। उसके मुख्य तीन भेद हैं -(१) क्षयोपशम दर्शन-समाधि, (२) उपशम दर्शनसमाधि और (३) क्षायिक दर्शन-समाधि। इन तीनों समाधियों को प्राप्त करने के लिए उससे पूर्व भी अनेक प्रकार की अवान्तर समाधिय सिद्ध करनी पड़ती हैं; जैसे
(१) योग की प्रथम मित्रा दृष्टि में 'अवंचकत्रप" की प्राप्ति से सद्गुरु का योग आदि प्राप्त होता है। "यह अवंचक एक प्रकार को अव्यक्तसमाधि ही है।"
(२) योग की चतुर्थ दोप्रा दृष्टि में गुरु-भक्ति के प्रभाव से समापत्ति समाधि विशेष आदि के योग से तीर्थंकर भगवान का दर्शन होना बताया है । समापत्ति समाधि विशेष ही है और वह यहाँ चरम-यथाप्रवृत्तिकरण की विशुद्धि के प्रकर्ष से सिद्ध होती है (योगदृष्टि श्लोक ६४)।
(३) अपूर्वकरणरूप समाधि के द्वारा ग्रन्थि (राग-द्वेष की तीव्र गाँठ) का भेदन होता है।
(४) अनिवृत्तिकरण रूप समाधि के द्वारा नियमा “सम्यग्-दर्शन" रूप समाधि प्रकट होती है।
ज्ञान-समाधि-(१) क्षायोपशमिक ज्ञान-समाधि और (२) क्षायिक (केवल) ज्ञान-समाधि रूप है।
(१) क्षायोपशमिक ज्ञान समाधि-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव इस
१. अवंचक-अव्यक्त समाधिरेवेष : तदधिकारपाठात् ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org