Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 186
________________ समापत्ति और कायोत्सर्ग १६१ श्रद्धा आदि पांचों की प्राप्ति एवं वृद्धि क्रमशः ही होती है । यदि प्रथम श्रद्धा उत्पन्न हुई हो तो मेधा उत्पन्न होती है। इन दोनों की उपस्थिति में ही धृति प्रकट होती है - श्रद्धा आदि तीन के द्वारा धारणा उत्पन्न होती है और उन श्रद्धा आदि चारों की सहायता से ही क्रमशः अनुप्रेक्षा की शक्ति प्रकट होती है । अतः श्रद्धा आदि के अनुक्रम से हुआ उपन्यास हेतु युक्त है ! योग्य अधिकारी - " इन श्रद्धा आदि पाँचों की उत्तरोत्तर वृद्धि पूर्वक कायोत्सर्ग करता हूँ ।" इसमें बताया गया है कि कायोत्सर्ग का योग्य अधिकारी कौन है ? कायोत्सर्ग का योग्य अधिकारी वही हो सकता है कि जिसमें श्रद्धा आदि गुण उत्पन्न होते हों और उनकी वृद्धि होती हो । श्रद्धा आदि से विकल होने वाला व्यक्ति कायोत्सर्ग का सच्चा अधिकारी नहीं है | सच्चे अधिकारी में तो उस उस क्रिया के प्रति आदर आदि अवश्य प्रकट होता है । क्षयोपशम आदि के कारण मंद, मध्यम, उत्कृष्ट आदि अधिकारी के अनेक भेद हो सकते हैं । आगार - कायोत्सर्ग में रखी गई छूटों का वर्णन “अन्नत्थ सूत्र" में "ऊससीएणं से हुज्ज मे काउं" तक हो चुका है - सांस लेना अथवा छोड़ना, खांसी, छींक, उबासी, डकार, अपानवायुत्याग, भमरी, वमन, सूक्ष्म अंगसंचालन, सूक्ष्म श्लेष्म संचालन, सूक्ष्म दृष्टि संचार अथवा उजेही के प्रसंग पर, पंचेन्द्रिय की आड़ चोर तथा सर्पदंश के भय का प्रसंग | उपर्युक्त कारणों से देह का संचालन हो तो भी कायोत्सर्ग की "प्रतिज्ञा " नहीं टूटे और निर्धारित कायोत्सर्ग अभंग रहे, इस हेतु से ये सोलह आगार (छूट) रखे जाते हैं । आगारों का रहस्यार्थ - कायोत्सर्ग रूप महान् ध्यान योग की साधना में प्रवेश करते समय काया के समस्त स्थूल व्यापारों का निरोध किया जाता है, परन्तु जो सूक्ष्म स्पन्दन हैं, जिन्हें रोका नहीं जा सकता अथवा जिन्हें रोकने से स्वास्थ्य की हानि तथा जीव हिंसा जैसी महान हानि होती हो ऐसे कारणों की छूट रखी जाती है ताकि कायोत्सर्ग की प्रतिज्ञा का भंग न हो । इससे ज्ञात हो सकता है कि कायोत्सर्ग की महासाधना के लिए कैसी विलक्षण कलेबन्दी को जाती है, तथा ध्यानस्थ दशा में पर्याप्त कर्म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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