Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 189
________________ १६४ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म सम्पूर्ण संवर फल की प्राप्ति -- (१) कायोत्सर्ग में मन, वचन, काया का निरोध होने से मनोगुप्ति, वचनगुप्ति एवं काय गुप्ति सिद्ध होती है। ___ (२) कायोत्सर्ग में बाईस परीषह सम्यग प्रकार से सहन किये जाते हैं। (३) क्षमा आदि यतिधर्मों का पालन होता है, तथा अनित्य आदि बारह भावनाएँ भावित होती हैं। (४) कायोत्सर्ग के द्वारा सामायिक आदि पाँचों चारित्र प्राप्त होते हैं और उनमें स्थिरता आती हैं, जिससे कायोत्सर्ग के द्वारा समस्त प्रकार का संवर सिद्ध होता है, अर्थात् समस्त प्रकार के आस्रवों (कर्म बन्ध के हेतु) को रोका जाता है। कायोत्सर्ग में समस्त आस्रवों का निरोध (१) पाँच इन्द्रियों के विषय का दमन होता है। (२) क्रोध आदि कषायों पर विजय प्राप्त होती है । (३) हिंसा, असत्य, चोरी, कामभोग और परिग्रह (मूछी) का त्याग होता है। (४) मन, वचन और काया के अशुभ सावध व्यापारों का त्याग होता है। (५) कायिकी आदि पच्चीस क्रियाओं का भी यथायोग्य रीति से गुण स्थानक के कम से निरोध होता है। कायोत्सर्ग से कर्म-क्षय (निर्जरा)-- बारह (छः बाह्य और छ: अभ्यन्तर) प्रकार के तपों से कर्मों की निर्जरा होती है। कायोत्सर्ग यथायोग्य प्रकार से बारह प्रकार के तपों का आचरण होने से उसके द्वारा अपार कर्म-निर्जरा होती है। (१) अनशन-कायोत्सर्ग के समय चारों प्रकार के आहार का सर्वथा त्याग होता है । इससे ही (२) उणोदरी, (३) वृत्ति-संक्षेप, (४) रसत्याग (विगई का त्याग) भी सहज ही सिद्ध होता है। (५) काय-क्लेश-कायोत्सर्ग के द्वारा काया का कष्ट समभाव से सहन करना पड़ता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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