Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 182
________________ समापत्ति और कायोत्सर्ग १५७ द्रव-मोक्ष प्राप्ति के लिए और सम्यग्दृष्टि देव के स्मरणार्थ कायोत्सर्ग किया जाता है। प्रस्तुत सूत्र में वन्दन आदि छः कारणों के लिए कायोत्सर्ग का विधान है। अरिहन्त परमात्मा की प्रतिमा चित्त की समाधि उत्पन्न करती है, अतः उनका वन्दन, पूजन (सुगन्धित पुष्पों आदि के द्वारा) सत्कार (श्रेष्ठ वस्त्र आभूषणों के द्वारा पूजन), सम्मान (स्तुति के द्वारा) करने से जो कर्मक्षय के रूप में महान लाभ प्राप्त होता है, वह लाभ इस कायोत्सर्ग के द्वारा भी होता है, तथा बोधिलाभ-जिनप्रणीतधर्म की प्राप्ति होती है । उस बोधिलाभ के द्वारा निरुपद्रव (जन्म, जरा, मृत्यु आदि उपद्रवों से रहित) अवस्था रूप मोक्ष प्राप्त होता हैं । । उपर्युक्त हेतुओं से कायोत्सर्ग किया जाता है। - इस प्रकार आठ प्रयोजन सिद्ध करने में समर्थ होने के कारण कायोत्सर्ग का अपूर्व सामर्थ्य सरलतापूर्वक समझा जा सकता है। कायोत्सर्ग में प्राप्त होने वाली मन, वचन और काया को स्थिरता (निश्चलता) के द्वारा पापों का क्षय होता है। जिन वन्दन, पूजन, सत्कार और सम्मान के द्वारा जो फल प्राप्त हो सकता है वैसा फल कायोत्सर्ग से प्राप्त होता है और जिनप्रणीतधर्म (सम्यक्त्व आदि) की प्राप्ति होती है तथा क्रमशः मोक्षफल (अनन्त, अक्षय, अव्याबाध सुख) भी प्रकट हो सकता है। कायोत्सर्ग का इतना अपूर्व सामर्थ्य प्रकट होने का कारण हेतु साधन' ---उपर्युक्त सम्यक्त्व एवं मोक्षरूप कार्य को सिद्ध करने में समर्थ कायोत्सर्ग के प्रकृष्ट साधन, वृद्धि होती हुई श्रद्धा, मेधा, धृति, धारणा और अनुप्रेक्षा हैं। इनके द्वारा कायोत्सर्ग करने से इष्टफल सिद्ध होता है, परन्तु श्रद्धा के बिना किया गया कायोत्सर्ग सम्यक्त्व आदि फल उत्पन्न नहीं कर सकता। १ "चैत्यवन्दन भाष्य' में कायोत्सर्ग करने के बारह निम्न कारण बताये गये हैं "चउ "तस्स उत्तरीकरग" पमुह "सद्धाइयाय" पण हेउ । "वैयावच्च गरताइ" तिन्नि ६उ हेउ बारसगं ॥ ५४ ॥" "तस्सउत्तरीकरण" आदि चार, "श्रद्धा" आदि पाँच और वैयावृत्यकरण आदि आदि तीन-इस प्रकार बारह कारण (साधन) हैं । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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