Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm
Author(s): Kalapurnsuri
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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समापत्ति और समाधि १४७ बनाने का ही है और वह लक्ष्य परमात्म-स्वरूप में तन्मय होने से ही सिद्ध होता है।
इसके लिये “उपमिति भवप्रपंच" में कहा है किमूलोत्तरगुणाः सर्वे, सर्वा चेयं बहिकिया। मुनीनां श्रावकाणां च, ध्यानयोगार्थमोरिताः ।।
साधुओं तथा श्रावकों के पालन करने योग्य स पस्त प्रकार के मूल ब्रत एवं नियम तथा समस्त प्रकार को बाह्य क्रियाएँ ध्यान योग को सिद्ध करने के लिये बताई गई हैं ।
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