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१४ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म यिक को 'समास' कहा जा सकता है, तथा चौदह पूर्व अथवा समस्त द्वादशांगी का पिण्डित अर्थ सामायिक में संगृहीत होने से इसे "संक्षेप" भी कहा जाता है।
सम्यगज्ञान के बिना समता प्राप्त नहीं होती, यह बताने के लिये ही यहाँ "समास एवं संक्षेप" इन दो नामों के द्वारा बताया गया है कि सामायिक श्रुत ज्ञान स्वरूप है, इसमें समस्त द्वादशांगी के महान् गम्भीर भाव भरे हुए हैं।
सामायिक समस्त पाप व्यापार के परिहार से प्राप्त होती है। जब तक जीवन में एक पाप-कार्य भी चल रहा हो, तब तक 'सम्पूर्ण सामायिक' प्राप्त नहीं हो सकती। यह बात बताने के लिये सामायिक को "अनवद्य" नाम से भी सम्बोधित किया गया है।
समस्त सावध की त्याग-स्वरूप सामायिक हेय-उपादेय वस्तु के ज्ञान के बिना सम्भव नहीं होती, तथा यह समस्त सावद्य त्याग का प्रत्याख्यान मुरु भगवान को साक्षी में ही करना पड़ता होने से सामायिक के “परिज्ञा" एवं "प्रत्याख्यान" नाम भी सार्थक हैं। - श्री आचारांग सूत्र में "परिज्ञा" के दो भेद बताये गये हैं-(१) ज्ञपरिज्ञा और (२) प्रत्याख्यान परिज्ञा। यहां उन दोनों को सामायिक के समानार्थक नामों के रूप में ग्रहण किया गया है । परिज्ञा में ज्ञान एवं क्रिया रूप मोक्ष-मार्ग का निर्देश होने से वह सामायिक स्वरूप है।
सामायिक के ये आठों एकार्थक नाम (पर्यायवाची शब्द) सामायिक के भिन्न-भिन्न अर्थों को स्पष्ट बोध कराते हैं ।
इन आठों नामों में रत्नत्रयी एवं पंचाचार का अन्तर्भाव हो चुका है, जिसका निम्न विचार किया जा सकता है
___ “सामायिक" प्रशम भाव की प्राप्तिस्वरूप होने से उसमें सम्यग्ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रयी का और ज्ञानाचार, दर्शनाचार और चारित्राचार का समावेश हुआ है।
सम्यग्वाद—यह वचन शुद्धि रूप होने से उसमें सम्यग्-दर्शन एवं दर्शनाचार का समावेश हुआ है ।
समास, संक्षेप एवं परिज्ञा शब्दों में सम्यग्ज्ञान और ज्ञानाचार का समावेश हुआ है।
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