Book Title: Sarvagna Kathit Param Samayik Dharm Author(s): Kalapurnsuri Publisher: Prakrit Bharti AcademyPage 88
________________ (४) सर्वविरति सामायिक के पर्यायवाची नाम सामायिक, सामयिक, सम्यग्वाद, समास, संक्षेप, अनवद्य, परिज्ञा और प्रत्याख्यान - ये "सर्वविरति" के समानार्थक नाम हैं । www. निरुक्ति द्वार ६३ (१) सामायिक - सम- रागद्वेषरहित होने से मध्यस्थ; सम की प्राप्ति वह समाय; वही सामायिक है । अर्थात् राग-द्व ेषरहित अवस्थासमता; मध्यस्थ भाव अथवा प्रशम भाव की प्राप्ति होना "सामायिक" है । (२) सामयिक - सम सम्यक् अय-प्राप्ति; जिसमें सम्यग्दयापूर्वक ( मैत्री भावपूर्वक ) समस्त जीवों के प्रति व्यवहार हो वह "सामयिक" है । (३) सम्यग्वाद - राग-द्व ेषरहित मध्यस्थ भाव से यथार्थ कथन " सम्यग्वाद" है । Jain Educationa International (४) समास - संसार में से जीव को अथवा जीव में से कर्म को बाहर निकालना ( पृथक करना) अथवा जो समता का स्थान होता है वह 'समास' कहलाता है । (५) संक्षेप - महान् अर्थयुक्त फिर भी अल्पाक्षरी, अतः वह संक्षेप कहलाती है । (६) अनवद्य - पाप रहित हो वह 'अनवद्य' । (७) परिज्ञा - पाप का त्याग करने के लिये हेय उपादेय वस्तु का ज्ञान प्राप्त करना वह " परिज्ञा" है । (८) प्रत्याख्यान - त्याज्य वस्तु का गुरु- साक्षी से निवृत्ति कथन । विशेष – सामायिक एकान्त से प्रशम की प्राप्ति स्वरूप है । शमप्रथम समाधि स्वरूप है । कहा भी है कि विकल्प विषय से रहित, आत्मस्वभाव के आलम्बन वाली ज्ञान की परिपक्व अवस्था "शम" है । ऐसे शमरस में तन्मयता होना सामायिक है और वह मानसिक समता स्वरूप है, जिससे सिद्ध होता है कि "सामायिक" परम समाधि स्वरूप है, और इसकी प्राप्ति समस्त जीव- विषयक दया (मंत्री) के पालन से ही हो सकती है, इसके अतिरिक्त नहीं । जिसमें ऐसा प्रवर्तन हो उसे "सामायिक" कहते हैं । इस व्याख्या से कायिक समता का निर्देश दिया गया है। जिनवचन का मध्यस्थता से उपदेश सम्यग्वाद, है, वचन-क्रिया रूप सामायिक वाचिक समता को सूचित करती है । इस प्रकार तीनों योगों की समतापूर्वक प्रवृत्ति सामायिक है । केवल चार अक्षरों में अनेक गम्भीर अर्थ समाविष्ट होने से सामा For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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