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सामायिक सूत्र : शब्दार्थ एवं विवेचना ७७ इसी तरह से सामायिक करने वाला भी एक होते हुए भी विवक्षावश कर्ता, कर्म और करण के रूप में कहा जा सकता है।
(१) "करेमि" पद का रहस्य-"करेमि" क्रिया सामायिक की क्रिया और उसके कर्ता को सूचित करती है। प्रत्येक कार्य में षट्कारकचक्र का कारण के रूप में उपयोग होता है, उसके बिना कोई भी कार्य नहीं हो सकता।
वास्तव में तो कर्तृत्व आदि छ: महाशक्ति आत्मा की ही हैं, परन्तु अनादिकालीन अज्ञान के अधीन बने संसारी व्यक्ति देह में ही आत्मबुद्धि रखकर और उसके काल्पनिक सुख के लिए हिंसा आदि अनेक पाप-व्यापार करते हैं जिससे इन कारक शक्तियों का विपरीत प्रयोग होने से ज्ञानावरणीय आदि कर्मों का सजन होता है और उसके फलस्वरूप जीव को अनेक प्रकार की दारुण वेदना भोगनी पड़ती है. बहुत समय तक संसार में भटकना पड़ता है। जब किसी सच्चे सद्गुरु का पवित्र सम्पर्क होता है और उनसे सामायिक का सुन्दर स्वरूप श्रवण करके (ज्ञात करके) उस समस्त सावद्य-पाप व्यापार का परित्याग करक और समभाव में रहने के लिए "सामायिक" की प्रतिज्ञा ग्रहण करता है, तब उसको कतत्व आदि शक्तियां आत्मस्वरूप की साधक बनकर क्रमशः मोक्ष रूपी काय को सिद्ध करने के लिए तत्पर होती हैं।
इस प्रकार अनादि काल से बाधक रूप में परिवर्तित होने पर (एक कतृत्व शक्ति का परिवर्तन होने से शेष कारक शक्ति भी स्वयमेव परिवर्तित हो जाती है ) इस षट्कारक चक्र का सद्गुरु भगवान “सामायिक" के द्वारा साधक के रूप में परिवतित कर सकते हैं।
(२) "भन्ते" पद का रहस्य- इस पद के द्वारा जगद्गुरु तीर्थंकर परमात्मा एवं सद्गुरु भगवान का निर्देश दिया गया है ।
___ "करेमि भन्ते सामाइयं" ये तीनों शब्द ध्याता, ध्येय और ध्यान को सूचित करते हैं। जब तीनों की एकता हो जाती है, तब निश्चय-सामा यिक (समापत्ति) सिद्ध होती है।
प्रथम कक्षा में व्यवहार सामायिक में तीनों को भिन्नता होती है, जैसे
(१) ध्याता-अन्तरात्मा, सामायिक करने वाला व्यक्ति । (२) ध्येय-परमात्मा अथवा गुरु भगवान ।
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