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२४ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म
काया वचन योग में दो इन्द्रिय आदि जीव उत्पत्ति के समय सास्वादन की अपेक्षा से श्रुत एवं सम्यक्त्व दो सामायिकों के पूर्वप्रतिपन्न हो सकते हैं।
(१९) देह द्वार-औदारिक देह में चारों सामायिक दोनों प्रकार से होती हैं। वैक्रिय देह में सम्यक्त्व एवं श्रत सामायिक प्राप्ति की रटन होती है, क्योंकि देव कभी-कभी नरक में जाते हैं और कभी-कभी नहीं जाते;
और वैक्रिय देह बनाते समय मनुष्य एवं तिथंच भी देशविरति एवं सर्वविरति प्राप्त नहीं करते । पूर्वप्रतिपन्न तो चारों सामायिकों के होते हैं । आहारक देह में देश विरति के अतिरिक्त तीनों सामायिक पूर्वप्रतिपन्न होती हैं । तेजस-कार्मण देह में अन्तराल गति से श्रुत एवं सम्यक्त्व पूर्वप्रतिपन्न हो सकती हैं।
(२०-२१) ज्ञान द्वार एवं उपयोग द्वार-उपयोग के मुख्य दो प्रकार हैं--(१) साकार और (२) निराकार।
(१) साकार उपयोग ज्ञानस्वरूप है । (२) निराकार उपयोग दर्शनस्वरूप है ।
इन दोनों प्रकारों में सामान्यतया चारों सामायिकों की प्राप्ति (प्रतिपत्ति) होती है और पूर्वप्रतिपन्न होती हैं।
पांच ज्ञान-मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान । चार दर्शन-चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल दर्शन ।
मतिज्ञानो एव श्रुतज्ञानी सम्यक्त्व एवं सामायिक एक साथ प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु देश-विरति एवं सर्व-विरति सामायिक विकल्प से कोई जीव प्राप्त करे और कोई जीव प्राप्त न भी करे । पूर्वप्रतिपन्न नियमा होती है।
चक्षुदर्शन एवं अचक्षुदर्शन में मति एवं श्रुत के अनुसार समझ लें।
अवधिज्ञान एव' अवधिदर्शन में सम्यक्त्व एव श्रुत सामायिक के पूर्वप्रतिपन्न ही होते हैं परन्तु नवीन प्राप्ति नहीं करते तथा वे देशविरति सामायिक भी प्राप्त नहीं करते; क्योंकि देव, नारक, संयमी एवं श्रावक इन चार में से प्रथम तीन को देश-विरति सामायिक प्राप्त होने की सम्भावना नहीं है, श्रावक भी पूर्व में देश-विरति गुण यूक्त होता है, तत्पश्चात् वह अवधि प्राप्त करता है और सर्व-विरति सामायिक मनुष्य को आश्रित होकर दोनों प्रकार से होती है।
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