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सामायिक व्यक्ति की संख्या आदि द्वार ५६ दो भेद संसारस्थ जीवों के हैं। अनादि निगोद में से कदापि बाहर नहीं आये हुए जीव "असंव्यवहार राशि वाले" कहलाते हैं और जो जीव निगोद से बाहर निकलकर व्यवहार-पृथ्वी, जल आदि अथवा दोइन्द्रिय आदि भाव को पाये हए हैं वे "संव्यवहारराशि वाले" कहलाते हैं। ये राशि वाले समस्त जीव अक्षरात्मक सामान्य श्रुत को स्पर्श किये हुए होते हैं। दो इन्द्रियत्व आदि में सामान्य श्रुत का सद्भाव होता है। - सिद्ध भाव प्राप्त किये हुए समस्त जीव सम्यक्त्व एवं चारित्र को स्पर्श किये हुए होते हैं। उसके बिना सिद्धत्व प्रकट ही नहीं होता।
अनेक जीव देशविरति सामायिक प्राप्त किये बिना भी मरुदेवी माता की तरह सीधे ही मोक्ष में जाते हैं, जिससे समस्त सिद्धों के एक असंख्यातवे भाग जितने जीवों ने उसका स्पर्श नहीं किया। समस्त शेष सिद्ध जीव देशविरति को स्पर्श करके मोक्ष गये हैं। सम्यक्त्व आदि सामा. यिक जीव के पर्याय होने से भाव हैं, इस कारण उसको स्पर्शना "भावस्पर्शना" कहलाती है।
इस स्पर्शना द्वार में बताई हुई बातों पर सूक्ष्म चिन्तन करने से साधक को साधना में उपयोगी सुन्दर चिन्तन सामग्री प्राप्त हो सकती है। . क्षेत्र स्पर्शना में बताई गई केवली समुद्घात की प्रक्रिया का प्रयोग भूतकाल में अनन्त सिद्ध परमात्माओं ने सिद्ध होने से पूर्व अपने जीवन के उत्तर काल में किया है। उनके पवित्र आत्म-क्षेत्र में रहकर मैं उन सिद्ध परमात्मा के ध्यान से अपनी अन्तरात्मा को पवित्र कर रहा हूँ, तथा वर्त-- मान काल में महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान केवली-भगवान् सिद्ध अवस्था प्राप्त करने से पूर्व इस समुद्धात की प्रक्रिया के द्वारा जब अपने निर्मल आत्म प्रदेशों को विश्वव्यापी बना रहे होंगे, तब उन पवित्रतम आत्म-प्रदेशों का पुनीत स्पर्श मेरी आत्मा के प्रत्येक प्रदेश से भी अवश्य होता ही होगा।
पवित्रतापूर्ण पुद्गलों की स्पर्शना का वह पल-विपल कितना अद्भुत एवं धन्यतम होगा।
क्षेत्र-स्पर्शना का प्रभाव इस कलियुग में भी प्रत्यक्ष रूप से देखने-. जानने को मिलता है । "कांकरे कांकरे सिद्ध अनन्ता" आदि विशेषताओं के कारण जिस तीर्थ की अन्य समस्त तीर्थों की अपेक्षा अधिक महिमा शास्त्रों में गाई गई है, उस सिद्धगिरि की यात्रा करते हए अनेक भाविक यात्री भूतकालीन अनन्त सिद्धात्माओं के पुण्य स्पर्श से पवित्र बने इस तीर्थ
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