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५८ सर्वज्ञ कथित : परम सामायिक धर्म
स्पर्शना द्वार - इसमें बताया गया है कि सामायिक-वान् जीव कितने क्षेत्र का स्पर्श कर सकते हैं। सम्यक्त्व और चारित्रवान् जीव उत्कृष्ट से समग्र लोक का स्पर्श करते हैं, जघन्य से लोक के असंख्यातवे भाग का स्पर्श करते हैं।
उपयुक्त उत्कृष्ट स्पर्शना "केवली समुद्घात" के समय होती है । आठ समय की समुद्घात को प्रक्रिया में चौथे समय केवली भगवान आकाश के प्रत्येक प्रदेश में आत्मा का एक एक प्रदेश जमाकर सर्वलोकव्यापी बनते है, उस अपेक्षा से यह बात कही गई है।
श्रत सामायिक की स्पर्शना उत्कृष्ट से सात राज अथवा पाँच राज और जघन्य से लोक का असंख्यातवां भाग है। देशविरति सामायिक की स्पर्शना उत्कृष्ट से पांच राज अथवा दो राज और जघन्य से लोक का असंख्यातवा भाग है जैसे
कोई श्रुत ज्ञानी तपस्वी मुनि इलिका गति से अनुत्तर विमान में उत्पन्न हो रहे हों तब वे यहां से सात राज तक ऊर्ध्व लोक को स्पर्शना करते हैं। . कोई देशविरति इलिका गति से अच्युत देवलोक में उत्पन्न हो तो पांच राज, अथवा दो राज तक ऊर्ध्वलोक की स्पर्शना करते हैं ।
देशविरति जीव अधोलोक में नहीं जाते।
क्षेत्र से सम्बन्धित स्पर्शना समाप्त हो गई । अब भाव से सम्बन्धित स्पर्शना का वर्णन करते हैं।'
__ भाव-स्पर्शना-सामान्य श्रुत की स्पर्शना समस्त संव्यवहार राशि वाले जीवों द्वारा की गई है।
सम्यक्त्व एवं चारित्र की स्पर्शना समस्त सिद्धों के जीवों ने की हुई है।
देशविरति सामायिक की स्पर्शना सिद्ध होने से पूर्व समस्त सिद्धों के . असंख्यातवे भाग प्रमाण जीवों ने की हुई है।
विवेचन-संसारी एवं सिद्ध दो भेदों में समस्त जीवों का समावेश हो जाता है । संसार के जीव "संसारी" और सिद्धशिला पर विराजमान जीव "सिद्ध" कहलाते हैं। सिद्ध जीवों में किसी भी प्रकार की भिन्नता नहीं होती, जबकि संसारी जीवों में अनेक भेद-उपभेद होते हैं, जैसे
(१) संव्यवहार राशि वाले और (२) असंव्यवहार राशि वाले । ये
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