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सामायिक प्राप्ति का पूर्वाभ्यास १५ जिनेश्वर भगवान द्वारा प्ररूपित तत्त्वों के प्रति अखण्ड श्रद्धा प्रकट करना।
सद्गुरु की धर्म-देशना को श्रवण करके तदनुसार जीवन यापन करना।
गुणवान मनुष्यों के प्रति हृदय में सद्भाव एवं सम्मान रखना। अपनी शक्ति के अनुसार धर्म कार्यों में सदा प्रयत्नशील रहना।
देह आदि जड़ पदार्थों की आसक्ति का परित्याग करके आत्मोत्थान की प्रतिक्षण चिन्ता रखना। देश-विरति सामायिक प्राप्त करने के उपाय -
स्वभूमिका के अनुरूप शास्त्रोक्त अनुष्ठानों का विधि पूर्वक पालन करना।
सदा नमस्कार महामन्त्र का स्मरण, मनन एवं चिन्तन करना।
तीनों समय जिनेश्वर भगवान की स्व द्रव्यों से विधिपूर्वक पूजा करना।
गुरु-वन्दन, सेवा, भक्ति और सद्गुरु से धर्म का श्रवण करना । शुद्ध आशय से यथाशक्ति दान देना।
श्रावक-धर्म में कोई रुकावट आये, उस प्रकार से महा आरम्भसमारम्भ युक्त कर्मादान आदि का त्याग करके न्याय-नीतिपूर्वक जीवन निर्वाह करना।
दोनों समय प्रतिक्रमण करना। जीव आदि तत्त्वों का अध्ययन एवं मनन करना। अनित्य आदि बारह भावनाओं को नित्य हृदय में रखना।
'श्राद्ध-विधि' आदि ग्रन्थों में निर्दिष्ट श्रावकों के योग्य आचारों का पालन करने से देश-विरति सामायिक की शुद्धता में वृद्धि होती जाती है
और उसके प्रभाव से चारित्र-मोहनीय-कर्म का क्षयोपशम होने पर सर्व-विरति सामायिक की प्राप्ति होती है। श्रु त एवं सम्यक्त्व सामायिक प्राप्ति के उपाय
तत्त्व श्रवण करने की उत्कंठा जागृत करना। धर्म के प्रति प्रेम उत्पन्न करना।
देवाधिदेव अरिहन्त परमात्मा तथा निर्गन्थ गुरु भगवानों की सेवा'भक्ति करना।
अपराधी को भी क्षमा करना, उसका भी अहित नहीं सोचना।
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