Book Title: Samyaktva Parakram 02
Author(s): Jawaharlal Acharya, Shobhachad Bharilla
Publisher: Jawahar Sahitya Samiti Bhinasar

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Page 13
________________ पांचवां बोल-३ अब यह देखना चाहिए कि आलोचना किसे कहते हैं ? __ आल चना का अर्थ करते हुए कहा गया है - प्रा- सामस्त्येन स्वागताऽकरणीयस्य वागादियोग त्रयेग गुरोः पुरो भावशुद्धया प्रकटनमालोचना ।। 'आलोचना' शब्द आ+लोचना इन दो शब्दो के सयोग से बना है । 'आ' उपसर्ग है और 'लोचना' 'लोचदर्शने' धातु से बना है । 'आ' उपसर्ग का अर्थ है पूर्ण रूप से, और लोचना का अर्थ है किसी कार्य को विचारपूर्वक प्रकट करना । इस प्रकार आलोचना शब्द का सामान्य अर्थ है- मोह के कारण जो अकरणीय कार्य हो गये हों, उनके लिए बिना किसी के दबाव के, भावशुद्धि को दृष्टि मे रखकर गुरु के समक्ष मर्यादापूर्वक प्रकट कर देना अर्थात, मन, वचन और काय से जो अकृत्य कार्य किया हो, उसे अपने गुरु के समक्ष प्रकट कर देना । 'आलोचना' शब्द के विषय में शास्त्रो मे बहते विचार और ऊहापोह किया गया है । ऊपर बतलाया जा चुका है कि 'आलोचना' इस पद मे 'आ' उपसर्ग है और लोचना शब्द 'लोच दर्शने' धातु से बना है । धातु के अनेक अर्थ होते हैं, इस कथन के अनुसार 'लोच दर्शने' धातु के भी अनेक अर्थ हो सकते है। श्री आचारॉगसूत्र में कहा है कि बहुत-से गृहस्थ, साधुओ को भ्रष्ट करना चाहते हैं और इसलिए कहते है-'आपको ठड सता रही है । लीजिए हम अग्नि जलाते हैं । तो हे साधु । ऐसे समय पर तू आलोचना कर अर्थात् विचार कर । इस कथन के अनसार आलोचना का एक अर्थ विचार करना भी होता है। इसी तरह अनेक स्थलो पर शास्त्रो में 'आलोचना' शब्द विचार

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