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अमव्य की धार्मिक श्रमा ११८ प्रश्नोत्तर (शुद्धात्म स्वरूप का व्यवहार धर्म का स्वरूप ११८ ग्रहण कसे हों?).
१२७ निश्चय धर्म का स्वरूप
मैं कौन और कैसा हूं? १२५ निश्चय में व्यवहार स्वय विलीन स्वरूप की अज्ञता ही बंधन काम्लहै १२८ हो जाता है
११९ अपराधी बंधता-निरपराध मुक्त रागादि रूप परिणाम पर निमित्तक है ११९
होता है।
१२९
अपराध का स्वरूप और नामांतर ज्ञानी बुद्धिपूर्वक रागादि नही करता १२० अज्ञानी को बघ क्यो होता है ? १२०
निर्विकल्प दशा की अपेक्षा प्रतिक्रमण १२९ कर्म बध अन्य किन कारणो से
का विकल्प विष कुभ है। १३० होता है ?
अप्रतिक्रमण अमृत कुभ है। १३०
विकल्प मात्र बधन का कारण १३० द्रव्य और भाव प्रत्याख्यानादि में निमित्त नैमित्तिक सबध है।
इस सबध मे भ्राति का निराकरण १३१ अधः कर्मादि दोषो का शानी सर्व विशुद्ध ज्ञान अधिकार अकर्ता है।
___ द्रव्य अपने गुण पर्यायो का हीकर्ता है १३२ अध कर्म एव उद्देशिक आहार का जीव अन्य का कार्य या करण नही १३३ स्वरूप
१२२ कर्ता-कर्म की सिद्धि परस्पराश्रितहै १३३ ज्ञानी साधु को आहारादि क्रिया मे
आत्मा की दुर्दशा का कारण १३३ बध क्यो नही होता ? १५३
कर्मबध का मल कारण
१३४ इस सबंध मे भ्रम और उसका बघ का अभाव कब होता है ? १३४ निराकरण
१२४ अज्ञानी एव ज्ञानी के भावो मे अतर १३४
अभव्य शास्त्र पाठी होकर भीमिथ्या . मोक्षाधिकार
दृष्टि ही बना रहता है। १३५ दष्टात द्वारा बघका स्पष्टीकरण १२५
ज्ञानी की कला निराली है। ज्ञान मात्र से मुक्ति नही मिलती १२५ ज्ञान चेतना का परिणाम १३५ बध की चिता व ज्ञान से भी मुक्ति ज्ञानी की परणति
१३६ नही
१२६ कर्मों को आत्म परिणाम का कर्ताबधनो का काटना ही बधन मुक्ति मानने मे दोष
१३६ का उपाय
१२६ पर कर्तृत्व मानने में सैद्धातिक हानि १३६ बधन से मुक्ति कब सभव है? १२६ पर कत्तं व्य भाव रखने वाला मुकति बष हेय एव आत्म स्वभाव आदेय है १२७ का पात्र
१३७
मा