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समयसार-वैभव ( १११ ) __निश्चय नय से जीव विकार का नही--स्वभाव का कर्ता है शुद्ध दृष्टि से गुण स्थान ये यतः नहीं है जोव स्वभाव । पुद्गल कर्मोदय से होते अतः अचेतन सकल विभाव । कर्ता भोक्ता भी कर्मों का इसी दृष्टि से नहि चैतन्य । निश्चय कर्ता निज स्वभाव का नहि विकार का-जो पर जन्य ।
( ११२/१ )
उक्त कथन का समर्थन गुण स्थान संज्ञक प्रत्यय ही कर्मों के कर्ता निर्धान्त । जीव यूं न जड़कर्मों का प्रिय ! कर्ता होता सिद्ध नितान्त । यह निश्चय नय को कथनी है, जो कि एक है दृष्टि विशेष । भिन्न द्रव्य कत्तु त्व न जिसमें परिलक्षित होता निःशेष ।
( ११२/२ ) पति पत्नी संयोग निमित्तज होती जो कोई संतान । किसी दृष्टि से पति की या फिर पत्नी की ली जाती मान । यो मिथ्यात्वादिक संयोगज हैं जितने परिणाम प्रशेष । होते समुत्पन्न जीवन में पुद्गल कर्म जनित निःशेष । (111) परजन्य-पूसरों से उत्पन्न होने वाला। (1121) प्रत्पय-कारण । परिलक्षित-भली भांति जाना हुआ। निःशेष-परिपूर्ण। (112/2) अशेष-सब।