Book Title: Samaysar Vaibhav
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Jain Dharm Prakashan Karyalaya

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Page 203
________________ 114 अंतिम प्रशस्ति श्रीमद्भगवत्कुन्दकुन्द ने प्रात्म विभव प्रकटा अम्लान - समयसार चिर ज्योति जगाई जगती पर जिनवचन प्रमाण / भगवन्नमृतचन्द्र श्रीमज्जयसेन सूरि गुरुवर्य उदार / प्रात्मख्याति तात्पर्यवृत्ति रच उसी तत्व का किया प्रसार / (2) विद्वद्वर जयचन्द्र सुधी ने लिखकर भाषा में भावार्थ-- प्रात्मख्याति कृति पुनः सरल कर भव्यजनों को किया कृतार्थ / प्रिय ! इन सब पर आधारित यह समयसार वैभव परमार्थजैसा कुछ बन सका गूंथकर प्रस्तावित है लोक हितार्थ / इस नवीन कृति का निमित्त बन स्याद्राद नय कर अभिराम / वस्तु तत्व का कियाविवेचन अनेकांत मय 'नाथूराम' गुरु सिद्धांत शास्त्रि विद्वधर जगमोहन ने प्रथम महान - तद्गुरू स्याद्वाद वारिधि श्री वंशीधर ने पुनः प्रमाण - नय सुदृष्टि से परिशीलन कर बृहत् साधु श्रम किया प्रवीण ! तदनंतर यह कृति प्रामाणिक बन मुद्रित है सार्वजनीन / यदि त्रुटियां हों सुधी सुधारें, अल्पज्ञों से हों बहु भूल / शब्द अर्थ, पद, मात्रा या फिर भाव समझने में अनुकल / श्री दि० जैन मारवाड़ी मंदिर विनीत शक्कारशाजा इन्दौर माधुराम डोंगरोय जैन ( न्यायतीर्थ )

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