Book Title: Samaysar Vaibhav
Author(s): Nathuram Dongariya Jain
Publisher: Jain Dharm Prakashan Karyalaya

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Page 202
________________ समयसार-वैमव ( ४१४/६ ) निरपेक्ष ज्ञान एवं क्रिया नय से मुक्ति नहीं मिल सकती । मात्र ज्ञान नय पक्ष ग्रहण कर जो स्वछंद बन रहा नितांत । क्रिया पक्ष की निंदा करता, वह डूबेगा-गह एकांत । त्यों ही केवल क्रियाकांड में जो रत रहता ज्ञान विहीन । वह संस्मृति में ही भटकेगा भ्रांत पथिक बेचारा दीन । ( ४१७/७ ) मुक्ति कौन प्राप्त करता है ? किंतु वासना पाप कषायों का मन वच तन कर परिहार-- जो मुनि ज्ञान क्रिया मैत्री गह समदर्शी बन रहें उदार । स्याद्वाद कौशल कर निश्चल संयम साधन में बन लीन । भवसागर से हो जाते है पार परम योगीन्द्र प्रवीण । इति सर्व विशुद्ध शानाधिकारः अत मगल ( ४१५ ) समयसार वैभव असीम है, झलक मात्र यह ग्रंथ, निदान । इसे मनन कर प्रथम तत्व को जो यथार्थ कर वर पहचानश्रद्धारत रम रहे उसी में कर वर चिदानन्द रसपान । उन्हें मुक्ति साम्राज्य सहज ही हो जाये संप्राप्त महान । इति श्री समयसार-वैभव ग्रन्थ समाप्तम्

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