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समयसार-बंभव
( १४३/२)
समयसार पक्षातिकात है विश्व चराचर प्रकट जानते यद्यपि श्री अरिहंत समस्त । मतिश्रुतादि ज्ञानों के भी त्यों ज्ञाता दृष्टा मात्र प्रशस्त । कभी किसी भी नय का करते पक्षपात नहिं किन्तु नितान्त । समयसार ज्ञाता भी त्यों ही होता नय पक्षातिक्रांत ।
( १४३/३ ) यतः एकनय पक्ष स्वयं ही मिथ्यादर्शन है-एकांत । एक नयाश्रित मुख्य कथन में चरित मोह रहता सम्भांत । यतः राग का समावेश है इकनय मुख्य कथन में मित्र ! अतः पक्ष बिन श्रुतज्ञानी भी वीतराग सम महापवित्र ।
( १४४ ) यों सम्पूर्णनयों के पक्षों और विपक्षों से प्रतिक्रांत । ज्ञाता 'समयसार' कहलाता निर्विकल्प निस्पृह निर्भान्त । सम्यक्दर्शन ज्ञान उसी के व्यवहाराश्रित हैं व्यपदेश । कर्ता-कर्म, गुण-गुणी ज्ञाता, प्रादि भेद निश्चय नहि लेश ।
इति कर्ताकर्माधिकारः
(143/2) प्रशस्त-उत्तम । पक्षातिकांत-पक्ष से रहित । (143/3) विताम-चंदोबा, घेरा। (144) निष्पह-बिना किसी वासना वाला, मिरेन्छ । व्यपदेश-नाम भेव ।