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मोक्षाधिकार
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( २६१ ) ___ बध की चिता और ज्ञान-दोनों करने से मुक्ति नही मिलतो चिंतन या तद् ज्ञान मात्र से कटती नहीं कर्म जंजीर । अतः बंध के ज्ञान मात्र से ही संतुष्ट न होना धीर ! बंध छेद बिन किये न बंदी-पा सकता स्वातन्त्र्य, प्रवीण ! कर्म बंध छेदन बिन त्यों ही जीव न हो सकता स्वाधीन ।
( २६२ ) बधनों का काटना ही बध मुक्ति का उपाय यदि वह बंधन बद्ध काट दे पग में पड़ी बेढ़ियां हीन । तब होकर उन्मुक्त विचरता यत्र, तत्र, सर्वत्र, प्रवीण ! त्यों चेतन पावन समाधि सज कर्मबंध का कर अवसान-- अनुपम अचल अमल अविनाशी पद पाता-निर्वाण महान
( २६३ )
बधन से मुक्ति कब सभव है ? बंधन एवं प्रात्म तत्व को पृथक् पृथक् सम्यक् पहिचानबंध दुःख का हेतु जान कर-माना प्रात्म-शांति सुख खान । बंध विरत हो कर दृढ़ता से काटे विकट कर्म जंजीर । परमानन्द मयी अविनाशी मुक्ति वही पाता वर वीर ।