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समयसार-संभव
( २४०-२४१ )
बध हेतु का स्पष्टीकरण तन को तैल सचिक्कणता ही उसका दिखता कारण एक । धूप चिपकती नहि शरीर में चेष्टाएँ कर अन्य अनेक । त्यों मिथ्यात्वग्रस्त जन बनकर नित रागादि विकाराक्रांत - कर्म रजों से बंध रहता है-मन वच काय क्रिया कर भांत ।
( २४२-२४३ )
बध हेतु के अभाव मे बंध का अभाव यही मल्ल तन प्रक्षालन कर जब भी न कर तैल अभ्यंग-- धूलि बहुल व्यायाम सदन में मुद्गरादि लेकर भी संग-- तालपत्र कदली वंशों का छेदन भेदन कर अविराम. सचित् अचित् द्रव्यों का करता-घात, न ले किंचित् विश्राम
( २४४-२४५ ) उक्त सकल चेष्टाएं नाना-अस्त्रों से भी कर निष्पन्न । क्या कारण जो धूलि कणों से नहिं तन होता है प्रापन्न ? रजकण बंधन का समप्रतः निश्चय से कारण है एक-- तैल सचिक्कणता शरीर की, वपु चेष्टाएँ नहीं अनेक । (२४०) वयु-शरीर । (२४२) मध्यंग-मालिश ।