________________
८१
समयसार-वैभव
( १७२२ )
एक ज्ञातव्य रहस्य एक रहस्य यहाँ जो ज्ञानी करता है रागादि विभाव-- वे अबुद्धिपूर्वक होते है, अतः बंध का कहा प्रभाव । छमस्थों को हीन दशा में कर्मोदय निमित्त से राग-- होता, अतः उन्हें मिलता ही रहता सदा बंध में भाग !
( १७२/३ ) और सुनो, ज्ञानी जन रुचि से करता नहि रागादि प्रशेष । अतः न संसृति का कारण है तज्जन्यास्रव बंध विशेष । इसी दृष्टि से कहा निरानव, किन्तु अबुद्धिजन्य अनुरागरहने से बंधन भी होता, बंध हीन है भाव-विराग ।
( १७३ ) वास्तब मे रागद्वेष मयी परिणाम ही बध का कारण है सत्ता में रहता ज्ञानी के पूर्व बद्ध प्रत्यय का योग। तदपि नहीं बंधन का कारण-माना वह प्रत्यय संयोग । कर्मोदय में जबकि ज्ञान का राग द्वेष मय हो परिणामपुद्गलाणु तब कर्म बन बंधैं जीव संग परिणत हो वाम । (१७२/२) छमस्मों-अल्पज्ञानियों। (१७२/३) संसृत्ति-संसार परिप्रमण ।
(१७३) सज्जन्याखव-उससे होने वाला आत्रव। प्रत्यय-कारण ।