________________
५३
समयसार-वभर
( १०५ )
शका समाधान जब कि जीव कर्मों का कर्ता इस प्रकार होता प्रतिषिद्ध'जीवकर्म कर्ता है' जगमें, फिर क्यों यह लोकोक्ति प्रसिद्ध ? सुनो, बंधु ! शुभ-अशुभ भाव ही करता सदा जीव विभ्रांत । जिन्हे देख जीवो में होता कर्ता का उपचार नितांत ।
दृष्टात सुभट समर मे रण करते है, उन्हें विलोकन कर तत्काल । लोक कहे साश्चर्य कि नप ने किया युद्ध कितना विकराल ! पुद्गलाणु त्यों कर्मरूपधर यदपि परिणमें विविध प्रकार । चेतन तन्निमित्त होता, यों तत्कर्त त्व मात्र उपचार ।
( १०७ )
जीव कर्मो का कर्ता उपचार सही है। नय उपचार यही कहता है-जीव कर्म करता उत्पन्न । स्थिति बंधन का कर्ता या सुख दुख का भोक्ता वही विपन्न । कर्म ग्रहण करता, परिणमता कर्म विवश ही वह अविराम । यह सब है उपचार कथन ही, लोक जहाँ पाता विश्राम । (105) प्रतिषिद्ध-निषिद्ध, अस्वीकार जिसको 'न' कह दिया आवे। (106) तत्कतं त्व-उसका कर्त्तापन । साश्चर्यचकित होकर । (107) तन्निमित्त-उसका निमित्त
कारण । विपन्न-जिस पर विपत्ति आई हो। अविराम-तुरंत,तत्काल ।