________________
समयसार-वैभव
( ८८ ) मिथ्यात्वादि पुद्गल और जीव उभय में उत्पन्न होते है । जीव और जड़उभयाश्रित हैं-मिथ्यात्वादिक उभय विकार । जीवाश्रित है मिथ्याश्रद्धा अविरति या अज्ञान विकार । है मिथ्यात्व योग अविरति ज्ञानावरणादि प्रकृति परिणाम । पुद्गल जीव उभय के यों है मिथ्यात्वादिक द्वय-सम नाम ।
( ८६ ) किस कारण चेतन में होते मिथ्यात्वादि मलिन परिणाम ? भव्य ! सुनों संसृति में चेतन कर्मबद्ध रहता अविराम । मोह युक्त उपयोगमयी सब मिथ्या अविरति अरु अज्ञान । चेतन की परणतियाँ होती भूतग्रस्त जनवत् त्रय म्लान ।
(६० ) आत्मा तीन प्रकार के परिणाम विकारों का कर्ता है। - निश्चय कथित शुद्ध उपयोगी निरावरण चैतन्य महान । मिथ्या अविरति वा कषाय मय परिणत हो बन रहा अजान । जब जैसा उपयोग निरत बन करता उक्त मलिन परिणामउसका वह कर्ता बन जाता पा निमित्त कर्मोदय वाम । (88) द्वाय-दोनों। सम-एक समान । उभयाधित-दोनों के आश्रित । (89)संसतिसंसार वशा, परिभ्रमण की हालत । भूत प्रस्त-जिसको भूत लगा हुआ है। जनवत्मनुष्य के समान । त्रय-तीन । म्लान-मलिन, गंदी। (90) वाम-विपरीत, प्रतिकूल ।