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( ५६/१ )
शंका - समाधान यदि ये जीव नही हैं, केवल पुद्गल के परिणाम अशेषतो फिर किया जिनागम में क्यों जोव मान इनका व्यपदेश ? सुनो, भव्य ! एकांत नहीं है, चेतन भी पुद्गल के संगसविकारी बन फिरे भटकता रहै बदलता अपना रंग ।
( ५६/२ ) रंगे हुए वस्त्रों में होता 'नील पीत' का ज्यों व्यवहार । निश्चय शुक्ल स्वभाव वस्त्र का, नीलपोत औपाधिकभार । त्यों उल्लिखित गुणस्थानादिक संयोगज परिणाम अनेकजीव कहे व्यवहार दृष्टि से, निश्चय-शुद्ध चेतना-एक ।
( ५७ ) ___ वर्णादिक जीव के क्यों नही है ? वर्णादिक पुद्गल परिणामों का अनादि से चेतन संगसंयोगज सम्बन्ध मात्र है, नहि तादात्म्य उभय सर्वाग । नीर क्षीरवत् मिले हुए भी लक्षण से दोनों है भिन्न । पुद्गल जड़ स्वभाव, पर चेतन उपयोगाधिक गुण सम्पन्न । (56/1) व्यपदेश-भेद कथन। (57) संयोगज-दो वस्तुओं के मेल से उत्पन्न होने
वाला । तादात्म्य-ऐक्यपना । उभय-बोनों। सांग-पूर्णाश में ।