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समयसार-वैभव
( ५१ ) निश्चय से विकारी भाव भी आत्मा के स्वभाव नहीं रागद्वेष मय जितने भी है मोह जन्य परिणाम विशेष । शाश्वत जीव स्वभाव कभी भी हो न सके वे बंध! प्रशेष । मिथ्यादर्शन अविरति अथवा योग, कषाय, प्रमाद मलीननिश्चय नय से प्रात्म भिन्न हैं द्रव्य-भाव-नो कर्म प्रवीण !
( ५२/१ )
वर्ग वर्गणा आदि भी आत्मा नही समअविभाग प्रतिच्छेदमय शक्ति वर्ग कहलाती है । वर्गों का समुदाय वर्गणा जिनवाणी दरशाती है। इन्हीं वर्गणाओं से स्पर्द्धक बनते, पर ये सब नहि जीवमाने जा सकते न शुभाशुभ मन संकल्प विकल्प अजीब ।
( ५२/२ ) लता, दारु, अरु अस्थि, अश्मवत्, विविध शक्तियुत्घातियकर्म। या गुड़, खांड, शर्करा एवं सुधा स्वाद वत् सब शुभ कर्म । अशुभ-निंब, कांजीर, विष हलाहल सम जो अनुभाग स्थान । नहि अशुद्ध अध्यात्म मयो भी शुद्ध जीव के है संस्थान । (51) अविरति-असंयमभाव । (52/1) समअविभाग प्रतिच्छेव-अणुओं में एक समान फल देने की शक्ति रखने वाले अविभागी अंश, ऐसे कर्म परमाणु जिनमें एक समान फल देने के अंश मौजूद हैं। स्पर्द्धक फलदान शक्ति की विशेष वृद्धि को प्राप्त कर्म वर्गणाएं । संकल्प-बाह्य विषयों में ममत्व की कल्पना । विकल्प-मन में हर्ष विषाद आदि । अतीव-बहुत से (52/2) लता-बेल । दार-सकड़ी। अस्थि-हड्डी । अश्म-पत्थर । धातीय कर्म-आत्मा के शानावि गुणों का घात करने वाले मोहनीय, मानावरण बर्शनावरण अन्तराय कर्म । सुधा-अमृत । निव-नीम । अनुभागस्थान-कर्मों के फल देने की योग्यताएं।
अध्यात्म स्थान-मिप्यामान के समय होने वाले विकारी भाव ।