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समयसार-मव
( ६७ ) 'सूक्ष्म बादर' जीव संज्ञा मात्र व्यवहार सूक्ष्म बादरादिक जीवों को सूत्र कथित संज्ञा निभन्तिदेहों की ही है, घृत घटवत् अपर्याप्त पर्याप्त नितान्त । लौकिक जनको जीवतत्त्व के अवगम हेतु किया व्यवहार । विन व्यवहार शक्य नहिं जग में धर्म तीर्थ परमार्थ प्रसार ।
( ६८ )
वास्तविकता क्या है ? मोह व्याधि से पीड़ित है यह दृष्टादृष्ट सकल संसार । इसके उदय--योग से होता, गुण स्थान कृतभेद प्रसार । हैं कर्मोदिय जन्य अचेतन गुण स्थान नहि, जीवस्वभाव । निश्चय नय को शुद्ध दृष्टि में जीव-मात्र है ज्ञायक भाव ।
इति जीवाजीवाधिकारः
(67) संज्ञानाम । अवगम-ज्ञान कराना।