________________
जीवाजीवाधिकार
( १७ )
व्यवहार मोक्ष मार्ग का दृष्टांत धन का इच्छुक व्यक्ति प्रथम ज्यों राजा को सम्यक् पहिचान । राज्य पाट, वैभव, विलास लख उस पर करता दृढ़ श्रद्धान । फिर तन्मय हो सेवा कर वह रखता सतत प्रसन्न सयत्न । बन जाता है धनी इसी से पाकर धरा, धाम, धन, रत्न ।
( १८ )
दृष्टांत त्यों तजकर मति मोह मुक्ति की कर कामना जो मतिमान । उन्हे उचित चिद्रूप भूप को करना प्रथम सही पहिचान । फिर श्रद्धा रत रमें उसी में कर वर चिदानंद रस पान । उन्हें मुक्ति साम्राज्य सहज ही हो जाये संप्राप्त महान ।
( १६ ) जीव की अज्ञान (अप्रतिबुद्ध) दशा यह प्राणी संसार दशा में भूल रहा शुद्धात्म स्वरूप । देह तथा रागादिभाव को भ्रमवश मान रहा निज रूप । मेरी है रागादि विकृतियां, कमर्जजन्य पुद्गल परिणाम । यों भ्रमबुद्धि बनी रहने तक अप्रतिबद्ध हैं प्रातमराम । __(17) सतत-निरंतर । (18) चिबूप भूप-चेतन राजा ।