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जीवाजीवाधिकार
( ४६/१७ ) तल भागस्थ व्यक्ति श्रेणी चढ़ करता अपनी मंजिल पार । यदि श्रेणी को हेय समझले, तो नीचे रहजाय गॅवार । व्याधि ग्रस्त जन को औषधियाँ जो जो पड़ती है अनुकूल । उपादेय वे सभी, किन्तु दुर्व्याधि गये हो जाती धूल ।
( ४६/१८ ) यों निष्पक्ष दृष्टि से होता एक यही निश्चित सिद्धांत - अशुभ सदा ही हेय, कथंचित् उपादेय शुभ रहे नितांत । शुभ की पुण्य भूमि में रहकर लक्ष्य शुद्ध का रहे सयत्न । शुद्ध प्राप्त जब भी हो जाये, स्वयं शुभाशुभ छूटे प्रयत्न ।
( ४६१६ ) शुद्ध भाव से डिगे कदाचित्, ले शुभ का आश्रय तत्काल । पुनः शुद्ध समभाव प्राप्तकर स्वानुभूति रत रहें त्रिकाल । शुद्ध स्वानुभव का सुलक्ष्य नित सर्वदशामों में श्रद्धेय । रंच नहीं संदेह-प्राप्त करने में इसके ही है श्रेय । (46/17) सलभागस्थ-नीचे खड़ा हुआ। श्रेणी-सीढ़ी, जीना। व्याधिप्रस्त-रोगी, बीमार । दुर्व्याधि-बीमारी। अनुकूल-साभदायक। (46/18) कपंचित-किसी दृष्टि से-पात्रानुसार । सयत्न-प्रयत्म पूर्वक । अयत्न-बिना यत्न के। (46/19)अय-श्रद्धा
करने योग्य । भेय-कल्याण।