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जीवाजीवाधिकार
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( ३२ )
निश्चय जिनस्तवन का द्वितीय रूप प्रात्म-शत्रु खल मोह प्रबल है, जिसने फैलाकर विभ्रांति । जीवों को भव में भरमाया, उसे जीत जिसने की क्रांति । जाना-ज्ञानानंद मयी सत् परमतत्व चैतन्य-निधान । वही मोह जित् जिन कहलाता, यह द्वितीय संस्तवन महान ।
( ३३ )
निश्चय जिनस्तवन का तृतीय रूप वही मोहजित् साधु पुरुष जब सजकर परमसमाधिनितांत स्वानुभूति रत रह, क्षय करता-मोह महातम का निर्धान्त । उसे क्षीण मोहोजिन कहकर किया गया जो जिन गुणगान । वही शुद्ध परमार्थ दृष्टि से है जिनेन्द्र संस्तव अम्लान ।
( ३४ )
निश्चय प्रत्याख्यान प्रात्मद्रव्य से प्रकट भिन्न जो जड़ चैतन्यमयी संसार । तत्सम निज रागादि विकारी भावों को भी भिन्न विचार - आत्म ज्ञान जाग्रत होता जब कर वर चिदानन्द रसपान - वही ज्ञान परत्यागमयी है शुद्ध दृष्टि में प्रत्याल्यान । (32) खल-पुष्ट।