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समयसार-वैभव
( १२/४ )
निश्चय-व्यवहार में दृष्टि भेद जब प्रखंड ध व द्रव्य लक्ष्य में रहता, तब हो जाता गौणगुण पर्यय का भेद सहज हो; किन्तु नष्ट कर सकता कौन ? निश्चय नय की दृष्टि निराली, जहाँ भेद रहता नहि इष्ट । गुण पर्ययगत भेद व्यवस्था करता नय व्यवहार विशिष्ट ।
( १३ )
तत्व व्यवहार द्वारा सम्यक्त्व संप्राप्ति तीर्थ प्रवृत्ति हेतु प्रतिपादित, जीव, अजीव पुण्य अरु पाप--
आस्रव, संवर, बंधन, निर्जर और मोक्ष नवतत्व कलाप । इनमें इक चेतन ही, पुद्गल सँग अभिनय कर रहा, निदानतत्वों में भूतार्थदृष्टि यह कहलाता सम्यक्त्व महान् ।
( १४/१ )
___शुद्ध नय का स्वरूप वही शुद्ध नय जो प्रबद्ध, अस्पर्श कर्म से वर चिद्रूप-- अनुभव करता नाना रूपों में अनन्य परमात्म स्वरूप। हानिद्धि से रहित प्रात्म को देखे, नियत और अविशेष ।
राग द्वेष मोहादि विकृति से असंयुक्त पाता निःशेष । (13) तीर्थप्रवृत्ति-हेतु-धर्म तीर्थ को चलाने के लिये । कलाप-समूह । भूतार्थ दृष्टिशुशात्म द्रव्य पर अभेद दृष्टि। (14/1) अबद्ध-स्वतंत्र । अस्पर्श-अछूता । अनन्यअभिन्न-अभेव रूप । नियत-स्थिर । अवि शेष-गणों के भेद से रहित (अखंड) असंयुक्तअख, मोहादि से रहित । उदधि-समुद्र । अंतर्धान-गायब, दृष्टि के ओझल ।