Book Title: Samadhitantram
Author(s): Devnandi Maharaj, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 18
________________ ..... ... .etrJA N .. समापितत्र हो अथवा अभव्य हो, सबमें तीन प्रकारका आत्मा मौजूद है। सर्वझमें भी भूतप्रज्ञापननयकी अपेक्षा घृत-घटके समान बहिसरमावस्था और मन्तरात्मावस्था सिद्ध है। आत्माकी इन तोन अदस्थाओंमेंसे जिनकी परद्रव्यमें आत्मबुद्धिरूप बहिरात्मावस्था हो रही है उनको प्रथम हो सम्यक्त्व प्राप्त कर उस विपरीताभिनिवेशमय बहिरात्मावस्थाको छोड़ना चाहिये और मोक्षमार्गकी साषक अन्तरात्मावस्थामें स्थिर होकर आत्माकी स्वाभाविक वीतरागमयी परमात्मावस्थाको व्यक्त करनेका उपाय करना चाहिये ।। ४॥ तत्र पहिरन्तः परमात्ममा प्रत्येक लक्षणमाह-- बहिरास्मा शरीरावी जातात्मभ्रान्तिरान्तरः । पित्तदोषारमविभ्रान्तिः परमात्माऽतिनिर्मलः ॥५।। टोका-शरीरावी शारीरे आषिशब्दाद्वाङ्मनसोरेव ग्रहणं सत्र जाता मामेतिप्रान्तियस्य स पहिरामा भवति । आन्तर: अम्सर्भवः । 'तत्र भव इत्पणष्टेभमाने टिलोपमित्यस्यानित्यत्वं येषां च विरोधः शाश्वतिक इति नियात्, "मन्तरे वा भव बान्सरोऽन्तरात्मा । समयं भसो भवति ? सिलवोपालविभान्तिः पित्तं न विकल्पो दोषाश्च रागादयः, आत्मा च शुद्ध चेतयारण्यं तेषु विगता विष्य प्रान्तियस्म । मितं चित्तत्वेन बुध्यते दोषाश्च दोषत्वेन बात्मा आत्मत्वेनेस्पः । पित्तपोषेषु षा विगता आत्मेति प्रान्तियंस्य । परमात्मा भवति, कि विशिष्ट ? प्रतिनिर्मल प्रक्षोणाशेषकर्म मछः ॥५॥ __ अब बहिराल्मा, अन्तरास्मा और परमात्मामें प्रत्येकका लक्षण कहते हैं बबयार्ष-(शरीरादी जस्तात्मप्रान्तिः बहिराल्मा) शरीराविकमें बाल्ममान्तिको धरनेवाला- उन्हें प्रमसे बास्मा समझने वाला-बहिरामा है। (चित्तदोषास्मविश्वान्तिः आन्तरः) चित्तके, रागद्वेषादिक दोषोंके और आरमाके विषय में अभ्रान्त रहनेवाला उनका ठोक विवेक रखनेवाला अर्थात् चित्तको चिसरूपसे, दोषोंको दोषस्पसे और बास्माको प्रारमरूपसे अनुभव करनेवाला-अन्तरात्मा कहलाता है। (अप्ति १. बालागि बाहिरप्पा तरण्या है अप्प-संकप्पो । कम्म-कलंक-विमुक्को परमप्पा भन्पए देवो ।।५।। मोसमामृते, कुन्दकुन्दः

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