Book Title: Samadhitantram
Author(s): Devnandi Maharaj, Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 67
________________ -- - समाधितंत्र शरीरादिकमें जब तक आत्मबुद्धिसे प्रवृत्ति रहती है तभी तक संसार है और जब वह प्रवृत्ति मिट जाती है तब मुक्तिको प्राप्ति हो जाती है, ऐमा दशति हुए कहते हैं-- __ अन्धमार्य-( यावत् ) जब तक ( कायवाक्चेतसां त्रयम् ) शरीर, धचन और मन इन तीनोंकी (स्त्रबुद्धया ) आत्मबुद्धिसे ( गृह्णीयात् ) ग्रहण किया जाता है ( तावत् ) तब तक ( संसारः) संसार है ( तु) और जब ( एतेषां ) इन मन, वचन, कायका ( भेदाभ्यासे ) आत्मासे भिन्न होनेरूप अभ्यास किया जाता है तब ( निवृतिः ) मुक्तिकी प्राप्ति होती है। भावार्थ-जब तक इस जीवकी मन-वचन-कायमें आत्मबुद्धि बनी रहती है-इन्हें आत्माके ही अंग अथवा अंश समझा जाता है-तबतक यह जीव संसारमें ही परिभ्रमण करता रहता है। किन्तु जब उसकी यह भ्रमबुद्धि मिट जाती है और वह शरीर तथा वचनादिको आत्मासे भिन्न अनुभव करता हुआ अपने उस अभ्यासमें दृढ़ हो जाता है तभी वह संसार-बंधनसे छूटकर मुक्तिको प्राप्त होता है ।। ६२ ।। शरीरादावात्मनो भेदाप से रोस्टामाममा नायिका नायर हर दर्शयन् घनेत्यादि श्लोकचतुष्टयमाह घने वस्त्रे अथाऽऽरमानं न घनं मन्यते तथा । घने स्ववेहेप्यारमानं न घनं मन्यते बुधः ॥१३॥ टोका---प्रने निविडाक्य वस्त्रे प्रावृते सति मात्मामं धर्म दृढावयवं यथा बुषो म मन्यते । तथा स्वरोऽपि घने दृढ भास्मान पनं दृढं बुधो स मान्यते ।।६३॥ शरीरादिक आत्मासे भिन्न हैं. उनमें जीव नहीं-ऐसा भेदज्ञानका अभ्यास दृढ़ हो जानेपर अन्तरात्मा शरीरको दृढ़तादिक बननेपर आस्माकी दृढ़तादिक नहीं मानता, इस बातको आगेके चार श्लोकों में बतलत हैं। ___ अन्वयार्ष-( यथा) जिस प्रकार ( वस्त्रे घने ) गाढ़ा वस्त्र पहन लेनेपर (बुधः) बुद्धिमान पुरुष (आस्मनं) अपनेको-अपने शरीरको ( घनं ) गाढ़ा अथवा ष्ट ( न मन्यते ) नहीं मानता है ( तथा ) उसी प्रकार (स्वदेहेऽपि घने ) अपने शरीरके भी गाढ़ा अथवा पुष्ट होनेपर (बुधः) अन्तरात्मा ( आत्मानं ) अपने जीवात्माको (घन न मन्यते) पुष्ट नहीं मानता है ।। ६३ ।।

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