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समाधितंत्र वह प्राप्ति सुखसाध्य हो जाती है और इस तरह इस ग्रन्थकी भारी उपयोगिताको प्रदर्शित किया है ।। १०५ ।।
पेनात्मना बहिरन्तरुत्तमभिधा त्रेधा विवृत्योदितो, मोक्षोऽनन्तवसुष्टयाऽमलवपुः सद्धमानतः कीर्तितः । जीयात्सोऽत्र जिनः समस्तविषयः श्रीपूज्यपादोऽमलो,
मयानन्वकरः समाधिशतकश्रीमत्प्रभेन्दुः प्रभुः ॥१॥ इति श्रीपण्डितप्रभाचन्द्र विरचिता समाधिशतकटीका समाप्ता'
अंतिम मङ्गल-कामना जिनके भक्ति-प्रसादसे, पूर्ण हुआ व्याख्यान । सबके उर मंदिर बसो, पूज्यपाद भगवान ॥ १ ॥ पढ़ें सुनें सब ग्रन्थ यह, सेवें अति हित मान । आत्म-समुन्नति-बीज जो, करो जगत कल्यान ।। २ ॥
१. मूरबिद्री के मठ की प्रतिमें उक्त पुष्पिका-वाक्य निम्न प्रकार पाया जाता
है:-इति श्रीजयसिंहदेव राज्ये श्रीमद्वारा निवासिना परापर परमेष्ठिप्रणामोपाषितामलपुण्यनिरास्ताखिलमलकलफेन श्रीमत्प्रभाचन्द्र पण्डितेन समाधिशतकटीका कुतेति ।।" इस वाक्य से प्रमेयकमलमातंपन आदि न्यायअन्योंके कर्ता धारानिवासी प्रभाचन्द्र ही जान पड़ते हैं।