Book Title: Raichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Author(s): Paramshrut Prabhavak Mandal
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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रा.जै.शा.
स्याद्वादमला है। [यहापर ' स्खलन ' इसके कहनेसे 'प्रामाणिक जनोंसे हंसे जाते है ' यह अर्थ ध्वनित होता है ] | क्या करते हुए स्खलित
होते है 'द्वयं अनुवृत्ति और व्यावृत्तिरूप लक्षणके धारक जो दो प्रत्यय है, उनको 'वदन्तः' कहते हुए स्खलित होते हैं। ॥१२॥
किससे इन दो प्रत्ययोंको कहते हुए स्खलित होते हैं ? इस आशंकामें कहते है कि 'परात्मतत्त्वात पदार्थोंसे भिन्न होनेके कारण अन्य और आपसमें एक दूसरेकी अपेक्षा ( जरूरत ) को नहीं धारण करनेवाले ऐसे जो सामान्य और विशेष है, उनका जो आत्मतत्त्व अर्थात् अनुवृत्ति तथा व्यावृत्तिरूप खरूप है, उससे अर्थात् उसका आश्रय करके [ यहांपर 'गम्ययपःकर्माधारे' इस सूत्रसे पंचमी विभक्ति हुई है ] केसे परात्मतत्त्वसे इस आशंकापर कहते है 'अतथात्मतत्त्वात्। [अन्य मतियोंद्वारा माना हुआ जो परात्मतत्त्व है वह सत्य न हो इसलिये यह विशेषण दिया गया है ] जिस एकान्तभेदरूप लक्षणके धारक प्रकारसे वैशेषिकोंने माना है, उस प्रकार नहीं है स्वरूप जिसका ऐसे परात्मतत्त्वसे । क्योंकि, सामान्य तथा विशेष ये दोनों पदार्थों में व्याप्त होकर स्थित है और वैशेषिकोंने इन दोनोंको पदार्थोंसे पर (जुदे ) माने है । परका अर्थ अन्य है और वह अन्यपना सर्वथा भेद |माने विना नहीं हो सकता है।
| किञ्च पदार्थेभ्यः सामान्यविशेषयोरेकान्तभिन्नत्वे स्वीक्रियमाणे एकवस्तुविषयं अनुवृत्तिव्यावृत्तिरूपं प्रत्ययद्वयं नोपपद्येत । एकान्ताभेदे चान्यतरस्यासत्त्वप्रसङ्गः, सामान्यविशेषव्यवहाराऽभावश्च स्यात सामान्यविर भयात्मकत्वेनैव वस्तुनः प्रमाणेन प्रतीतेः । परस्परनिरपेक्षपक्षस्तु पुरस्तान्निर्लोठयिष्यते । अत एव तेषां वादिनां स्खलनक्रिययोपहसनीयत्वमभिव्यज्यते । यो ह्यन्यथा स्थितं वस्तुस्वरूपमन्यथैव प्रतिपद्यमानः परेभ्यश्च तथैव
प्रज्ञापयन् स्वयं नष्टः परान्नाशयति न खलु तस्मादन्य उपहासपात्रम् । इति वृत्तार्थः॥४॥ A] और यह भी विशेष है कि, यदि पदार्थोंसे सामान्य और विशेषके सर्वथा भेद मानलिया जावे, तो एक वस्तुमें विषयके धारक
अनुवृत्ति और व्यावृत्तिरूप दो प्रत्यय सिद्ध न होवें । तथा यदि सर्वथा अभेद मानें तो दोनोंमेंसे किसी एकके अभावका प्रसंग आवै, और सामान्यविशेषरूप जो व्यवहार है, उसका भी अभाव होवै । क्योंकि, प्रमाणद्वारा सामान्य तथा विशेष इन दोनों रूपतासे ही वस्तुकी प्रतीति होती है अर्थात् सामान्य-विशेष खरूप ही पदार्थ प्रमाणसे जाना जाता है। [सामान्य और विशेष ये दोनों परस्पर अपेक्षा