________________
खोए बिना महिष के सींगों के बीच के स्थान पर मुष्टि प्रहार प्रारंभ किया। एकदो-तीन । महिष तिलमिला उठा। वह अशक्त हो गया।
वनमहिष के मल-स्राव हो गया।
यह देख कर सभी प्रेक्षकों के प्राणों में आशा की एक मीठी रेखा उभर
आई ।
और प्रसन्न वदन से देख रही वासरी के साथल में उसकी एक सखी ने चिकोटी काटते हुए कहा - 'बाप रे! बाप ! देख, यदि तू सावधान नहीं रहेगी तो सुदंत तेरी भी दशा इस वनमहिष'
क्योंकि सुदंत अपने बाहुबल से
सखी अपना वाक्य पूरा नहीं कर पाई महिष को धरती पर पटक चुका था लग रहा था मानो वनमहिष शक्तिशून्य होकर धरती पर गिर पड़ा है एक मानव के समक्ष वन का एक विराट् प्राणी
पामर बन गया था।
सुदंत ने भी अनुभव कर लिया कि वनमहिष शक्तिहीन बन गया है। अब वह पुन: उठने की स्थिति में नहीं है।
और मानो कुछ भी घटित न हुआ हो ऐसी स्वस्थता के साथ सुदंत पचास कदम दूर जाकर खड़ा हो गया। उसी क्षण वनमहिष भी उठा और मैदान छोड़कर वन की ओर भाग गया। वह भागता जा रहा था और बार-बार मुड़ कर देख रहा था कि कोई मानव पीछा तो नहीं कर रहा है।
वनमहिष पराजित हो गया ।
पारधियों ने सुदंत का जय-जयकार किया। सभी वृक्ष से नीचे उतरने लगे ।
सुदंत बहुत श्रमित हो चुका था एक जोरावर वनमहिष के साथ शक्ति - परीक्षण करना और ऐसे खूंखार जानवर को निस्तेज कर देना कोई खेल नहीं था मृत्यु के साथ मल्लयुद्ध था" श्रमित सुदंत सुस्ताने के लिए एक ओर बैठ गया।
सुदंत के मित्र दौड़े-दौड़े उसके निकट आए और उसकी वीरता की प्रशंसा करने लगे।
और वहां बाल, वृद्ध, नर और नारी सुदंत को घेर कर खड़े हो गए। मुखिया पारधी भी वृद्धों की मंडली के साथ वहां आ पहुंचा। एक ओर पड़े आठ-दस खाट बिछा दिए गए। मुखिया ने सुदंत की पीठ थपथपाते हुए - सुदंत ! तुम्हारे पिता भी तुम्हारे जैसे शक्तिशाली और निर्भय थे। आओ पुत्र ! आओ। इस खाट पर बैठो आज तुम्हारे इस अनूठे विजय पर मुझे गर्व है और अपना यह सारा पारधी परिवार गर्विष्ठ हुआ है । "
कहा - "
सुदंत खाट पर बैठ गया ।
पूर्वभव का अनुराग / १५