Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 119
________________ सरल नहीं है और यदि प्रयत्न करने पर विफल होना पड़े तो फिर तरंगलोला को अत्याचार का भोग बनना पड़ेगा। ___ इतने में ही एक स्त्री मदिरा और मांसाहार का थाल लेकर वहां आ पहुंची और रुद्रयश से बोली-'सरदार ने यह भोजन इन नए बन्दियों के लिए भेजा है।' 'अच्छा' कहकर रुद्रयश पद्मदेव से बोला- पहले तुम और तुम्हारी पत्नी भोजन कर लो।' तरंगलोला और पद्मदेव-दोनों मौन थे। दोनों को मांसाहार और शराब का प्रत्याख्यान था। पद्मदेव ने तरंगलोला की ओर देखा। तरंगलोला बोली-'स्वामी! मैं तो प्रत्याख्यान करना चाहती हूं। आज उपवास करने की इच्छा है।' पद्मदेव ने तरंगलोला का समर्थन किया और दोनों ने उपवास कर लिया। पद्मदेव ने रुद्रयश से कहा-'भाई! हम ऐसा भोजन नहीं लेते और आज हम दोनों ने उपवास रखा है।' ___ 'जैसी तुम्हारी इच्छा-हमारी नगरी में मांसाहार और मदिरा सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं' कहकर रुद्रयश ने मांसाहार का थाल, शराब का भांड अपने पत्थर के आसन पर रख दिया। लुटेरी स्त्री थाल रखकर चली गई। रुद्रयश ने पद्मदेव को एक खंभे के सहारे बांध दिया। यह देखकर तरंगलोला कांप उठी। वह अपने प्रियतम से लिपटकर बोली-'स्वामीनाथ! मेरे लिए आप इतनी पीड़ा क्यों सहन कर रहे हैं? मैं बदनसीब आपको किस भव में सुख दे पाऊंगी!' फिर रुद्रयश की ओर देखकर बोली-'भाई! मेरे स्वामी को इस प्रकार क्यों बांधते हो? तुम मुझे भी उनके साथ बांध दो...... इनके दुःख का हिस्सा बंटाना मेरा धर्म है' यह कहकर तरंगलोला रो पड़ी। रुद्रयश भोजन करने में तल्लीन हो गया। पद्मदेव बोला-'तरंग! मृत्यु के सिवाय यहां से छुटकारा नहीं। मौत सामने खड़ी है, फिर घबराना क्या? रो-रो कर मौत को स्वीकार करने से तो अच्छा है हंसते-हंसते मौत को छाती से लगाएं। इसी में अपनी शोभा है।' 'ओह! नाथ! ऐसे निर्दय स्थल में हम कैसे आ गए? क्या अभी हमारे पापकर्मों का अंत नहीं आया?' फिर वह रुद्रयश की ओर अभिमुख होकर बोली-'भाई मैं कौशाम्बी नगरी के नगरसेठ की पुत्री हूं...... और ये धनदेव सार्थवाह के एकाकी पुत्र हैं....तुम यदि हमें यहां से मुक्त कर दो तो मैं अपने पिता के नाम एक संदेश लिखकर दूं जिससे कि तुम पिता से जितना धन मांगोगे, वह मिल जाएगा... हमें इस प्रकार पीड़ित करने से तुम्हें क्या लाभ होगा?' ___ 'बहिन! तुम दोनों को काली मां के बलिदानस्वरूप रखा है। यह लाभ हमारे लिए कम नहीं है....... क्योंकि इससे मां काली हम पर प्रसन्न रहेगी और पूर्वभव का अनुराग / ११७

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