Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ नाम की व्याधि हो गई है ? क्या तरंग सारसिका के घर भोजन करने रुक गई है ? सारसिका तो सरपट सोपान श्रेणी से उतर कर नीचे आ गई। सेठानी जब नीचे आई तब तक सारसिका भवन के बाहर निकल चुकी थी। सेठानी कुछ भी नहीं समझ सकी। दूसरों के कानों तक बात न जाए ऐसी क्या बात हो सकती है? क्या तरंगलोला ने आत्महत्या कर ली ? क्या किसी साध्वी के पास चली गई? इस प्रकार चिन्तामग्न होकर वह अनहोने प्रश्नों के साथ गंभीर होकर वहीं एक झूले पर बैठ गई ? सारसिका की प्रतीक्षा करने लगी । प्रतीक्षा की घड़ियां दीर्घ होती हैं। सेठानी बार-बार जाली से मार्ग की ओर देख रही थी । सारसिका जब राजमार्ग पर आई तब तक लोगों का आवागमन प्रचुर मात्रा में हो गया था। वाहनों का आना-जाना भी हो रहा था। सारसिका ने आकाश की ओर देखकर यह अनुमान लगा लिया था कि दिवस का दूसरा प्रहर कभी का प्रारंभ हो चुका है। वह धनदेव सेठ के भवन के पास पहुंची और मुख्य द्वार से भीतर देखते ही चौंकी। धनदेव सेठ स्वयं वहां खड़े थे और पद्मदेव के मित्रों से पद्मदेव की खोज करने के लिए कह रहे थे । भवन में अनेक व्यक्ति पद्मदेव की टोह में निकल पड़े थे । सारसिका को जो जानना था, वह ज्ञात हो गया पद्मदेव और तरंगलोला- दोनों रात में ही पलायन कर गए हैं" किस दिशा में गए हैं ? उसी समय एक वृद्ध मुनीम जैसा व्यक्ति गंभीर वदन से बाहर निकला। वह निकट आया तब सारसिका ने पूछा - 'पूज्य श्री कोमल मधुर स्वर ! ! वृद्ध मुनीम ने सारसिका की ओर देखा । सारसिका ने पूछा - 'सेठजी के भवन में आज इतनी हलचल क्यों है ? क्या छोटे सेठजी का विवाह होने वाला है ?' 'ओह ! पुत्री ! आज के लड़कों पर कोई विश्वास नहीं होता । कल रात्रि में छोटे सेठ बिना कुछ बताए, कहीं चले गए हैं। एकाकी पुत्र का इस प्रकार चला जाना माता-पिता के लिए चिन्ता का कारण हो जाता है " हम सभी उनकी खोज में व्यग्र हो रहे हैं।' वृद्ध मुनीम ने चलते-चलते कहा । सारसिका तत्काल वहां से नगरसेठ के भवन की ओर चल पड़ी। दिन का दूसरा प्रहर पूरा हो उससे पूर्व ही सारसिका भवन में प्रविष्ट हो गई। राजभवन से सेठजी लौट आए थे। सुनंदा ने सेठजी से अभी कुछ नहीं कहा था। उसे भय था कि तरंगलोला बाहर गई है, यह जानते ही सेठजी भोजन नहीं करेंगे। नगरसेठ ने भोजन करते-करते पूछा- 'तरंग कहां है? क्या कर रही है ?' 'आज वह अपनी सखी के घर भोजन करने गई है। ' पूर्वभव का अनुराग / १२९

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148