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करते-करते कुल्माश हस्ती ने कहा-'मित्र! यहां से केवल दो-तीन खेत जितनी दूरी पर एक विशाल वटवृक्ष है। वह वृक्ष महान् तीर्थस्थल है।'
'तीर्थस्थल!' पद्मदेव ने प्रश्न किया?
'हां, भगवान् महावीर केवलज्ञान से पूर्व यहां आए थे और इसी वटवृक्ष के नीचे वास किया था। इसीलिए इस स्थान को वैसालिक कहा जाता है और गांव का नाम भी वैसालिक पड़ गया है। किंवदंती है कि इस वृक्ष की पूजा के निमित्त देव, दानव, किन्नर, विद्याधर यदा-कदा यहां आते रहते हैं।'
दूसरे दिन सभी उस वटवृक्ष को देखने गए और वृक्ष की विशालता से सभी आश्चर्यचकित रह गए।
फिर सभी ने शालांजना नगरी में विश्राम कर दूसरे दिन कौशाम्बी की ओर प्रस्थान कर दिया।
२२. मंगल विवाह वत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी नगरी! समृद्ध और सुंदर।
चारों ओर बिखरे उपवन। इन्द्र की अलकापुरी भी इतनी रमणीय होगी या नहीं? यह प्रश्न दर्शक के मन में उभरे बिना नहीं रहता था।
पद्मदेव के माता-पिता, मित्र, मुनीम, दास-दासी कुल्माश हस्ती के संदेश से परम प्रमुदित होकर नगर से डेढ़ कोस की दूरी पर स्थित एक सुंदर उपवन में आकर प्रतीक्षारत थे। इसी प्रकार तरंगलोला के परिवारजन, दास-दासी भी वहीं ठहर गए थे।
दिन का प्रथम प्रहर चल रहा था। एक वृक्ष के नीचे जाजम बिछाकर नगरसेठ और धनदेव सेठ परस्पर बातचीत कर रहे थे। बात ही बात में नगरसेठ बोले-'सेठजी! हमें दो अश्वारोहियों को अगवानी में भेजना चाहिए।'
_ 'हां, मेरा मन भी बहुत विह्वल हो रहा है।' कहकर धनदेव खड़े हुए....... मार्ग की ओर देखा...' वे तत्काल उल्लासभरे स्वरों में बोले-'सेठजी! खड़े होकर देखें, सभी आ रहे हैं। नगरसेठ तत्काल खड़े हुए।'
कुछ दूरी पर बैठी स्त्रियां भी खड़ी हो गईं और सभी मार्ग की ओर देखने
लगीं।
सबने रक्षकों सहित रथ को आते देखा। सभी के हृदय उल्लसित हो गए।
मात्र अर्धघटिका में कुल्माश हस्ती आ पहुंचा.... उसके पीछे-पीछे एक अश्व पर पद्मदेव पहुंचा
एकाकी पुत्र! धनदेव और पद्म की माता के नयनों से आंसू बहने लगे। १३४ / पूर्वभव का अनुराग