Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 118
________________ इस गृह में रातभर सोने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। इस गृह में दिन में सूर्य का प्रकाश रहता था। यह संपूर्ण नगरी पर्वतमालाओं के मध्य थी। कोई इस पर आक्रमण कर सके, ऐसी कल्पना कभी नहीं होती थी। यहां आनेजाने के दो मार्ग थे...... एक मुख्य मार्ग और दूसरा गुप्त मार्ग। गुप्त मार्ग की जानकारी मात्र सरदार और उसके कुछेक मुख्य साथियों को थी। शेष उस मार्ग से अनजान थे। यदि कभी अचानक कोई राजा की आक्रामक सेना यहां आ जाए तो उस गुप्त मार्ग से सभी पलायन कर सकते हैं, यह इस गुप्तमार्ग का मुख्य प्रयोजन था। इस गुफा नगर का अतीत अत्यंत भव्य था। सौ वर्ष पूर्व इस स्थल पर ऋषि का आश्रम था और सौ विद्यार्थी उनके पास वेदाध्ययन करते थे। इतना ही नहीं, यहां आश्रम की परंपरा अनेक शताब्दियों से चल रही थी। ___मात्र दो दशक पूर्व ही आकस्मिक ढंग से इस नगरी का पता लुटेरों के सरदार को मिला और उसे यह स्थान अपने लिए अत्यंत सुरक्षित लगा। उसने इसे अपना मुख्य अड्डा बना दिया। इस गुफा नगरी में लगभग तीन सौ व्यक्ति आराम से रह सकें, ऐसी यहां व्यवस्था थी। यह स्थान अत्यंत एकान्त और सुखद था। रुद्रयश ने पद्मदेव की ओर देखकर कहा-'तुम्हारा नाम क्या है?' 'पद्मदेव!' 'तुम्हारी पत्नी का नाम?' 'तरंगलोला।' रुद्रयश ने तरंगलोला की ओर देखकर कहा-'नाम, रूप, रंग-सभी सुन्दर हैं 'परन्तु भाग्य असुंदर है' पद्मदेव ने कहा। तरंगलोला रुद्रयश की ओर मुड़कर बोली-'भाई! हमको बंदी क्यों बना रखा है? हमारे पास जो संपत्ति थी, वह तुमने ले ली है... फिर इस नरक जैसे स्थान में हमें क्यों रखा है ?' रुद्रयश ने हंसते हुए कहा-'तुम अत्यंत भाग्यशाली हो...' दो-तीन दिनों के पश्चात् महामाता काली का रिक्त खप्पर तुम्हारे रक्त और मांस से भर जायेगा और तब तुमको अनन्त सुख की प्राप्ति होगी...... यदि सरदार ने तुम दोनों को बलि के लिए पसन्द नहीं किया होता तो न जाने तुम्हारी क्या दशा होती?' उसी वक्त एक लुटेरा रज्जु लेकर वहां आ पहुंचा। रुद्रयश रज्जु हाथ में लेकर बोला-'पद्मदेव! तुम शक्तिशाली हो, जवान हो, इसलिए तुम्हें मैं बंधनग्रस्त करना चाहता हूं. परन्तु तुमको भोजन आदि नियमित रूप से मिलता रहेगा।' पद्मदेव मौन रहा। वह मन ही मन समझ चुका था कि यहां से छिटक जाना ११६ / पूर्वभव का अनुराग

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