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नहीं किया था....' आज मैं अपनी आंखों से देख रहा हूं कि यह सुरापान करके आया है। तू अभी पानी का एक घड़ा भर कर यहां ला। माधव तत्काल पानी लेने निकल पड़ा।
६. लूट-मार की योजना ___ माधव पानी का घड़ा लेने गया था..... महापंडित ने मन ही मन सोचा नहीं, नहीं, इस प्रकार उतावल नहीं करनी चाहिए। प्रात: रुद्रयश को मैं समझाऊंगा..... पुन: यदि वह ऐसी भूल करेगा तो मैं कठोरता बरतूंगा।
ऐसा सोचकर वे कमरे से बाहर आए। माधव घड़ा लेकर आ गया था..." महापंडित ने उसे इशारे से भेज दिया और शयनखंड का द्वार बंदकर अपने खंड में आ गए।
रात्रि का चौथा प्रहर चल रहा था। महापंडित चिंतामुक्त होकर शौचार्थ निकल पड़े।
__ अनेक चिंताएं ऐसी होती हैं कि उनको दूर करने का प्रयास करते हैं और वे व्यक्ति को दबोच डालती हैं। महापंडित के लिए भी ऐसा ही हुआ। वे प्रतिदिन गंगातट के किनारे एकाध कोस दूर जाते थे और लौटते समय स्नान कर फिर पूजा-पाठ करते थे।
चलते-चलते उसके मन में विचार आया कि रुद्रयश बहुत चंचल हो गया है। चोरी, द्यूत, असत्य के साथ-साथ मद्यपान भी प्रारंभ कर दिया है....... यदि वह नहीं समझेगा तो मेरी परम्परा को विकृत कर देगा। अब इसको कैसे समझाया जाए?
यह सच है कि दूसरों को प्रतिबोध देने वाले निपुण व्यक्ति स्वयं के बालबच्चों को नहीं समझा पाते।
पंडितजी के मन में यह भी विचार आया कि यदि रुद्रयश का विवाह किसी योग्य कन्या से कर दिया जाये तो संभव है सब कुछ ठीक हो जाए..... नहीं, नहीं, ऐसी छोटी अवस्था में विवाह करना उचित नहीं होगा और यदि ऐसा करने पर भी यह रास्ते पर न आए तो बेचारी उस कन्या का जीवन तो बिगड़ ही जाएगा..... नहीं...... नहीं...... ऐसा सोचना ही नहीं चाहिए।
इस प्रकार विचारों के भंवर में फंसे पंडितजी धीरे-धीरे अपने घर आए और पूजागृह में चले गए। अभी सूर्योदय होने में दो घटिका शेष थी।
सूर्योदय हुआ। दिवस का प्रथम प्रहर पूरा हुआ तब रुद्रयश जागा....." शय्या पर बैठा...' गत रात्रि के मद्यपान का नशा अभी उतरा नहीं था। बाहर माधव खड़ा था। माधव से उसे ज्ञात हुआ कि पिताजी पूजागृह में हैं। इसलिए शीघ्रता से प्रात:कर्म कर, स्नान से निवृत्त हो, दुग्धपान कर घर से निकलने की ४० / पूर्वभव का अनुराग