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जाएगी तथा चार नाविकों को तथा दो रक्षकों को नौका की संभाल करने का आदेश देकर सभी पांथशाला में आ जाएंगे। तुम सब अवसर देखकर नौका को लूट लेना।'
यह बात बताने वाले उस धोखेबाज दास को भी यह ज्ञात नहीं था कि दस रक्षक साथ में हैं।
सभी साथी नौका में चले गए और उसे घाट से दूर रखा गया।
मैरेयपान का दौर प्रारंभ हुआ...... मिठाई के बर्तन खुले और अनगढ़ जवानी की मस्ती उछलने लगी।
मध्याह्न के बाद केशव भी आ गया।
नर्तकी का बजरा सूर्यास्त के पश्चात् आया। घाट पर होने वाला कलरव रुद्रयश और उसके साथियों ने सुना।
सैनिकों का बजरा भी आ पहुंचा।
लगभग दो घटिका के बाद नीलमणी, उसके वाद्यकार नृत्याचार्य, दासियां, तीन अन्य नर्तकियां और अन्यान्य व्यक्ति पांथशाला की ओर अग्रसर हुए।
स्वर्णमुद्राओं, अलंकारों तथा बहुमूल्य वस्तुओं की चार पेटियां सैनिकों के बजरे में थीं, इसलिए सभी रक्षक उस बजरे में रुक गए।
और अपक्व बुद्धि के तरुण बजरा लूटने की इच्छा से लुकते-छिपते किनारे पर चलने लगे। उनको यह कल्पना भी नहीं थी कि सौभाग्यपुर के रक्षक सैनिक भी साथ ही हैं।
परंतु दूर से दो बजरे देखकर रुद्रयश चौंका...... उसने धीरे से कहा-'यहां तो एक नहीं, दो बजरे हैं।'
'यह कैसे हुआ?' 'संभव है कि दूसरा बजरा अन्य यात्रियों का हो।' एक साथी ने कहा।
'तब तो दुगुना लाभ हुआ...... हम दोनों बजरों को लूटेंगे' कहकर रुद्रयश आगे बढ़ा।
शस्त्रों में उनके पास केवल तलवारें, भाले और क्षुरिकाएं थीं और कोई साधन नहीं था।
अंधकार फैल चुका था और दोनों बजरों में जलते हुए दीपक मंद-मंद प्रकाश फैला रहे थे।
केशव ने एक-एक कर दोनों बजरों को देखा... भीतर कोई मनुष्य है, ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था...... नाविक भी नहीं दीख रहे थे।
रुद्रयश ने साथी से कहा-'अब क्या करना है?'
'और करना ही क्या है? बजरे पर बाज की तरह टूट पड़ें...... आसपास में कोई है तो नहीं? हम जब तक बजरे के सामान को हस्तगत करेंगे तब तक काना ४६ / पूर्वभव का अनुराग