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सभी चित्रकक्ष के निकट आए.... सभी का मन भीतर जाकर चित्रावलोकन करने का हुआ। सभी भीतर आए और चित्रों को देखकर मुग्ध बन गए।
एक मित्र ने कहा-'ओह! चित्र कितने सजीव हैं।'
एक मित्र ने कहा-'ओह! पद्म इस ओर तो देख"..... पारधी युवक कितना सशक्त, सुडौल और सुंदर दिखाई देता है..... लगता है....... यह चित्रगत पारधी नहीं, जीवन्त व्यक्ति खड़ा है।'
इस प्रकार मित्र चित्र देखते-देखते बतिया रहे थे...... और पद्मदेव ने जब चक्रवाक के वध का चित्र देखा तब उसके समग्र ज्ञानतंतु झनझना उठे...... उसने सोचा, यह सरोवर, यह वनप्रदेश, यह हाथी, यह पारधी...' ओह! यह सारा मैंने कहीं देखा है..... कहां देखा है...... कब देखा है...... वह इसी बीच में गहरा उतरने लगा।
उसी समय उसकी दृष्टि चक्रवाक और चक्रवाकी के प्रणयप्रसंग के चित्र पर पड़ते ही वह कांप उठा..... हृदय का अंधकार दूर होने लगा और पूर्वजन्म की स्मृति का हल्का-सा स्पंदन होने लगा।
दूर खड़ी सारसिका पद्मदेव को स्थिर दृष्टि से देखती रही...... पद्मदेव के आनन पर उभरने वाली परिवर्तन की रेखाओं को वह ध्यानपूर्वक देखने लगी। उसने फिर पद्मदेव का निरीक्षण किया। कछुए के पैर जैसे उसके कोमल पैर थे। पैरों की पिंडलियां पुष्ट और गोलाकार थीं...... जंघाप्रदेश बलिष्ठ लग रहा था...... छाती मांसल और विशाल थी..... आनन अत्यंत सुंदर...... कामदेव जैसा रूप.... आंखों में तेज...' लग रहा था, मानो पृथ्वी पर चन्द्रमा हो ।
सारसिका को प्रतीत हुआ..... यह युवक सभी प्रकार से सुंदर और श्रेष्ठ है...... यह तरंग के योग्य है....।
इतने में ही एक मित्र ने पद्मदेव की ओर देखते हुए कहा-'पद्म! तू स्वयं कलाकार है, कला का पारखी है...... मौन क्यों हो गया? इधर देख तो सही..... दो तटों के बीच बहती हुई तरंगवती चंचल गंगा का कैसा सजीव चित्रण हुआ है..... कमलों से भरे-पूरे इस सरोवर को देख.... छोटे-बड़े वृक्षों वाले इस वनप्रदेश की ओर दृष्टि डाल..... वाह! वाह! चित्रकार ने अपने चित्रों में सभी ऋतुओं का सजीव दर्शन किया है...... देख, यह शरद् ऋतु का दृश्य है...... यह वसन्त ऋतु का.... प्रत्येक ऋतु की विशेषता उन-उन चित्रों में चित्रित है।'
चक्रवाक की प्रणयकेलि और मस्तीभरे चित्र की ओर दृष्टि डालते ही पद्मदेव बोलते-बोलते रुक गया...' कुछ क्षणों बाद बोला-'मित्र! प्रेमरूपी बंधन से बंधे हुए तथा स्नेह के पिंजरे में कैद यह चक्रवाक दंपती जीवन के समग्र प्रवाह में केवल प्रेम और एकतानता के प्रतिरूप ही बने हुए हैं। इस चित्र में, सरोवर के साथ तैरते से प्रतीत होते हैं और इस चित्र में रेतीले किनारे पर दोनों एक साथ ८४ / पूर्वभव का अनुराग