Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 96
________________ 'यह सब समुचित रूप से समाहित हो सकती है, यह मैं जानता हूं। यदि आप सहायक बनें तो कल ही पद्म के चेहरे पर प्रसन्नता फूट पड़ेगी......' 'क्या है बता।' 'पद्मदेव के पिता नगरसेठ के घर जाएं और उनकी एकाकी लड़की तरंगलोला के साथ सगाई करने की बात कहें... बस, सारा प्रश्न समाप्त हो जाएगा।' शेखर ने जातिस्मृति की बात को गुप्त रखते हुए कहा। 'नगरसेठ की कन्या के साथ सगाई! क्या वे अपनी बात स्वीकार करेंगे?' 'मां! धनदेव सेठ नगरसेठ से सवाये हैं..... व्यापार, कीर्ति, यश आदि में ये किसी से न्यून नहीं है और पद्मदेव आपका एकाकी पुत्र है और तरंगलोला भी नगरसेठ की एकाकी पुत्री है।' दो क्षण मौन रहकर मां बोली-'मैं आज ही पद्म के पिताजी से बात करूंगी। तू पद्म को कह देना कि वह उदास न रहे। उसकी इच्छा को पूरी करना माता-पिता का कर्त्तव्य है।' शेखर को संतोष हुआ। वह मां को नमन कर सीधा पद्मदेव के कक्ष में गया। मित्र की सारी बात सुनकर पद्मदेव के हृदय में आशा का तार झनझना उठा। १५. तरंगलोला की मांग धन, यश, कीर्ति, सुख आदि भाग्योदय से ही प्राप्त होते हैं। संसार में चार पुरुषार्थ हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। इनमें संसार के समस्त भौतिक और आध्यात्मिक आदर्श समाविष्ट हो जाते हैं। परन्तु इन चारों का विभाजन प्रकृति ने सुंदररूप से किया है। अर्थ और काम भौतिक सुखों के घटक हैं। सांसारिक सुख की कोई भी वस्तु इनसे अलग नहीं है...... इन दोनों की प्राप्ति भाग्य पर आधारित है। धर्म और मोक्ष ये दोनों तत्त्व भाग्य से परे हैं अर्थात् ये पुरुषार्थ के बिना प्राप्त नहीं होते। शाश्वत सुखों की प्राप्ति के लिए जन्म, जरा, व्याधि आदि पर विजय पाने के लिए भाग्य के भरोसे नहीं रहा जा सकता। पुरुषार्थ के बिना ये तत्त्व प्राप्त नहीं हो सकते। ___ कौशांबी नगरी में अनेक धनाढ्य व्यक्ति रहते थे। नगरसेठ ऋषभसेन की संपत्ति अपार मानी जाती थी। उनके बाद गणना में एकमात्र नाम आता था धनदेव सेठ का। धनदेव व्यापार में अत्यंत कुशल था। उसका भाग्य ऐसा था कि वह जो करता वह अच्छा ही होता। उसके पास भी अपार संपत्ति थी और स्थान-स्थान पर ९४ / पूर्वभव का अनुराग

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