Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 114
________________ दोनों प्रात:कर्म से निवृत्त हों, उससे पूर्व ही दूर की झाड़ियों में से कुछ एक मानवाकृतियां खड़ी हुई और वे इस ओर ही आने लगीं। ये लोग दस्यु जैसे भयंकर और क्रूर प्रतीत हो रहे थे। तरंगलोला की उस ओर दृष्टि जाते ही वह चीख उठी और बोली-'स्वामिन् ! कोई दस्युओं का गिरोह आ रहा है। अब हम क्या करेंगे?' ___'घबराओ मत प्रिये! तू देख लेना कि मैं एक लकड़ी से किस प्रकार उन सबको खदेड़ देता हूं। तेरे मिलने से मैं इतना बेभान हो गया था कि घर से निकलते समय कोई शस्त्र साथ में नहीं ले सका...... मैंने केवल जवाहरात ही साथ में लिये...... परन्तु ऐसी विपत्ति की संभावना भी नहीं की। फिर भी तू घबराना मत....' युद्ध में विजय उसी की होती है जो बलवान् होता है। वनप्रदेश में रहने वाले ये लोग मुझे नहीं पहचानते, यह स्वाभाविक है। इसीलिए वे हिम्मत कर इस ओर आ रहे हैं और हम भी कुछ आगे चले आए हैं। नौका तक पहुंचना कठिन है...... तू चिन्ता मत करना...' यदि ये दस्यु तेरे पर हाथ उठायेंगे तो मैं अपने प्राणों की बाजी लगा दूंगा।' 'मेरे प्रियतम! मुझे पुनः अनाथ बनाकर न जाएं.... आपको युद्ध करना ही हो तो पहले मुझे मरने देना....परन्तु आप झूठा साहस न करें ये लोग बहुत हैं और देखें ये सब इधर ही आ रहे हैं...... हम चारों ओर से घिर चुके हैं।' प्रियतमा के इस निवेदन से पद्मदेव शांत हो गया। लुटेरे निकट आ पहंचे लुटेरों के सरदार ने कड़ककर कहा-'खड़े रहो। तुम कौन हो? कहां जा रहे हो?' सरदार की गर्जना सुनकर तरंगलोला कांप उठी। पद्मदेव कुछ कहे उससे पूर्व ही सरदार ने तेज स्वरों में कहा- लगता है तुम अभी-अभी प्रणयसूत्र में बंधे हो! मैं तुमको मारूंगा नहीं। जो कुछ तुम्हारे पास हो, वह सारा हमें सौंप दो। कुछ भी गुप्त रखने का प्रयत्न मत करना, अन्यथा एक ही वार में दोनों को यमधाम पहुंचा दूंगा।' यह सुनते ही तरंगलोला ने अपने सारे आभूषण खोल कर रख दिए। लुटेरों ने आभूषण हस्तगत कर लिये। सरदार के आदेश से दोनों को पकड़ लिया। दो लुटेरे नौका की ओर गए और नौका में पड़ी जवाहरात की पेटी अपने कब्जे में ले ली। पद्मदेव विवश हो गया। पत्नी के शब्दों से वह अत्यन्त नाजुक स्थिति में आ गया। दोनों को लेकर वे लुटेरे गंगा के किनारे-किनारे चलने लगे। कुछ लुटेरे आगे चल रहे थे। बीच में पद्मदेव और तरंगलोला और पीछे कुछ लुटेरे थे। तरंगलोला घबरा कर चीख उठी। एक लुटेरे ने कहा-'चुप रह। अन्यथा हम तेरे इस आदमी को मार डालेंगे और तुझे अपनी पल्ली में ले जाएंगे।' ११२ / पूर्वभव का अनुराग

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