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चित्र किसने बनाए हैं और यह कथावस्तु क्या है? सारसिका सबको संतोषजनक उत्तर देती और सखी तरंगलोला द्वारा निर्दिष्ट दर्शक-भावनाओं का सूक्ष्मता से आकलन करती।
मध्यरात्रि बीत गई। लोगों के समूह घर की ओर मुड़ने लगे...... सारसिका के आनन पर निराशा की रेखाएं उभरने लगीं, क्योंकि अभी तक ऐसा कोई दर्शक नहीं आया था जो चित्रों को देखकर मूर्च्छित होता अथवा पूर्वजन्म की स्मृति के झूले में झूलने लगता।
जैसे-जैसे रात बीतने लगी, दर्शकों की संख्या घटने लगी और सारसिका की निराशा घनीभूत हो गई...... ओह! इतने श्रम से तैयार किए गए ये स्मृतिपट्ट क्या यों ही सूख जाएंगे? क्या तरंगलोला के पूर्वजन्म के पति का यहां जन्म नहीं हुआ है? यदि जन्मे हों और आज इस ओर न आए हों-क्या यह संभव हो सकता है? ओह! मेरी प्रिय सखी को कितनी वेदना होगी? जिसने आशा के अति सूक्ष्म तार को पकड़ कर इतने स्मृतिचिह्न बनाए हैं, वह आशा का पतलासा धागा यदि टूट जाएगा तो क्या मेरी सखी का हृदय नहीं टूट जाएगा? सारा आनन्द और उल्लास अकाल में ही मिट जाएगा ।
हां, मेरी सखी भी कितनी भोली है! क्या यह निश्चित कहा जा सकता है कि पूर्वभव के पति का जीव इसी नगरी के किसी संभ्रान्त कुल में जन्मेगा, जन्मा है? यह केवल कल्पना नहीं तो क्या है? कभी-कभी व्यक्ति अनहोनी कल्पनाओं के तार बुनकर उसके जाल में स्वयं ऐसा फंस जाता है कि उससे निकलना मुश्किल हो जाता है। क्या करूं? कैसे उसे समझाऊं? इस आशा के कारण ही उसने विवाह न करने की, दूसरे को पति रूप में स्वीकार न करने की प्रतिज्ञा की है, क्या वह न्यायोचित प्रतिज्ञा है ? ओह!......।
ऐसे विचारों में उलझी हुई सारसिका ने निराश होकर नि:श्वास छोड़ा। चित्रदर्शन के लिए नगर के हजारों नर-नारी आए थे। सभी ने चित्रांकनों की भूरिभूरि प्रशंसा की थी...... ये सारे चित्र उनके मनों को भा गए थे... परन्तु जिनके लिए यह आयोजन किया था, उनके दर्शन तो हुए ही नहीं। सारसिका ने मन ही मन सोचा-'संभव है, तरंग के पूर्वभव का पति यहां आया हो और चित्रों को देखकर उसे पूर्वजन्म की स्मृति न हुई हो। अब क्या किया जाए?'
सारसिका अत्यंत निराश होकर राजमार्ग की ओर देखने लगी......
वह चौंकी। उसने देखा पांच-सात युवकों की एक टोली बाहर घूम कर घर लौटती हुई लोकगीत की धुन में कुछ गुनगुनाती हुई इसी ओर आ रही है......
एक युवक कह रहा था-'पद्म! बाहर के उपवन में कार्तिक ने मुझे बताया था कि नगरसेठ के बाहरी भवन में अद्भुत चित्रकक्ष का आयोजन किया गया है। देख, सामने दीपमालिकाओं की जगमगाहट में कुछ चित्र यहां से दीख रहे हैं.'
पूर्वभव का अनुराग / ८३