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।' लज्जा,
जीवनभर तू मेरे चरणों का अनुसरण करती रही
हो गया हूं" संकोच आदि को छोड़कर पद्मदेव आंसूभरे नयनों से विलाप करने लगा। उसके एक मित्र ने कहा - ' अरे पद्मदेव ! ऐसी पगली बातें क्यों कर रहा है? क्या तू अभी तक होश में नहीं आया ?'
पद्मदेव ने मित्र की ओर देखकर कहा - 'मैं अभी सामान्य दशा में हूं।'
'तो फिर तुझे क्या हो गया है कि तू अनर्गल प्रलाप कर रहा है। तेरे प्रलाप को सुनकर हम कुछ भी नहीं समझ पा रहे हैं तेरे तो कोई प्रियतमा है
नहीं गंगातट की बात क्यों कर रहा है ?'
'मित्रो! मैं विक्षिप्त अवस्था में नहीं हूं। मैं स्वप्नाच्छादित भी नहीं हूं। तुमको मैं सारा वृत्तान्त बताऊंगा परन्तु तुम सब उस वृत्तान्त को अपने तक ही सीमित रखना। चित्रकक्ष में चक्रवाकों की जिस कथा का चित्रांकन किया गया है, वह मेरे पूर्वजन्म की सत्य घटना है।'
'विक्षिप्त नहीं तो और क्या ! यह कैसे हो सकता है ?' दूसरे मित्र ने कहा । सारसिका खड़ी खड़ी ये सारी बातें हर्षपूरित हृदय से सुन रही थी । पद्मदेव ने अपने मित्रों के समक्ष अपने पूर्वजन्म का समग्र वृत्तान्त कह सुनाया। अन्त में वह बोला- 'मित्रो! पारधी के बाण से मेरे प्राणपखेरू तो उड गए थे... किन्तु मेरी प्रिया मेरी चिता में झंपापात कर कैसे मरी - यह बात चित्रों को देखने के पश्चात् ही मैं जान पाया हूं। यह दृश्य देखते ही मुझे जातिस्मृति ज्ञान हुआ हृदय धड़कने लगा मैं मूर्च्छित हो गया" इन चित्रों को देखकर ही मुझे अतीत याद हो आया" चक्रवाक - जीवन के सारे संस्मरण स्मृतिपटल पर नाचने लगे. मित्रो! मैंने पूर्वजन्म की सारी बातें बतला दी है। मैंने यह भी निश्चय कर लिया कि इस जन्म में पूर्वजन्म की पत्नी के सिवाय अन्य किसी स्त्री से पाणिग्रहण नहीं करूंगा मैं नहीं कह सकता वह चक्रवाकी मेरे साथ भस्मसात् होकर कहां जन्मी होगी और मैं यह भी नहीं कह सकता कि वह
मनुष्य जीवन में आई हो " परन्तु मेरी अन्तर् आत्मा कहती है कि वह मुझे अवश्य मिलेगी ओह! ओह ! एक बात और मैं जानना चाहता हूं कि इन चित्रों का चित्रांकन किसने किया है ? मुझे प्रतीत होता है मेरे विगत जन्म की मेरी प्रियतमा ने ही ये चित्र चित्रित किए हैं उसके बिना ऐसी सत्य घटना चित्रित नहीं हो सकती अथवा उसके द्वारा सूचना प्राप्त कर किसी महान् चित्रकार ने ये चित्रपट तैयार किए हों ! अन्यथा ऐसे जीवन के संस्मरणों का कौनकैसे चित्रांकन कर सकता है? मैं चक्रवाक के रूप में अपनी प्रिया के साथ इस प्रकार रहा था, यह कोई प्रत्यक्ष रूप से देखे बिना कौन-कैसे कल्पना कर सकता है ? '
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यह सारी चर्चा सुनकर सारसिका वहां से चलकर अपने चित्रकक्ष में आ ८६ / पूर्वभव का अनुराग