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विश्राम करते हुए दीख रहे हैं...... देख, इस चित्र में दोनों किस प्रकार से आलिंगनबद्ध हो रहे हैं.....आकाश में भी साथ-साथ उड़ते हैं कमलवन में साथ-साथ घूमते हैं....... कहीं एक क्षण के लिए विलग नहीं होते......यह प्रेम... जीवन का यह मधुर उल्लास कितना महान् है?'
'अब तेरी कला-विवेचन की शक्ति खिल उठी है।' एक मित्र ने पद्म से
कहा।
किन्तु पद्मदेव अवाक् बना रहा...... चक्रवाक को तीर लगा है... उसकी पांख टूट गई है वह भूमि पर लुढ़क गया है और चक्रवाकी वेदनाभरी व्यथा भोग रही है...... अगले चित्र में चक्रवाकी मृत्यु को प्राप्त अपने प्रियतम के शरीर पर पांखें पसार कर रुदन कर रही है...... अगले चित्र में पारधी चक्रवाक के मृत शरीर को चिता पर रख रहा है..... और अगले चित्र में अथाह वेदना से व्यथित चक्रवाकी उस सुलगती चिता में झंपा ले रही है।
इन दृश्यों को देखते ही पद्मदेव की आंखों में अंधियारी छा गई....... उसके अन्य मित्र चित्रों को देखने में तल्लीन हो रहे थे...... परन्तु सारसिका उस युवक के भाव-परिवर्तनों को सूक्ष्मता से देख रही थी.....
और..... दूसरे ही क्षण पद्मदेव बोल उठा....... 'ओह....!'
पांचों मित्रों ने उसकी ओर देखा..... इतने में ही पद्मदेव मूर्च्छित होकर गिरने लगा। पास में खड़े उसके मित्र ने उसे संभालने का प्रयत्न किया। परन्तु संतुलन न रह पाने के कारण दोनों भूमि पर गिर पड़े।
मित्रों ने सोचा कि पद्मदेव की मूर्छा का मूल कारण ये चित्र बने हैं। वे पद्मदेव को चित्रकक्ष से उठाकर बाहर खुली हवा में ले आए।
यह देखकर सारसिका ने सोचा-'संभव है यह मूर्च्छित युवक पूर्वभव का चक्रवाक हो! यह सोचकर वह भी चित्रकक्ष के बाहर आई और मूर्च्छित युवक से कुछ दूरी पर खड़ी रही।'
मित्रों ने पद्मदेव की मूर्छा को तोड़ने का प्रयत्न किया..... उस प्रयत्न में सहयोग देने के लिए सारसिका बोली-'भाई! मैं अभी जलपात्र लेकर आती हूं।' यह कहकर वह दौड़ती हुई भवन में गई और कुछ ही क्षणों में जलपात्र लेकर आ गई। ___ मित्रों ने सारसिका का आभार माना। मूर्च्छित पद्मदेव के आनन पर ठंडे जल के छींटे दिए और कुछ ही क्षणों में पद्मदेव ने आंखें खोली। इधर-उधर देखा और जागृत हो बोला-'मेरी प्रियतमा! मेरी प्रेरणा......? तेरी श्यामल चमकीली आंखें कितनी सुंदर थीं....... अब तू कहां है? एक समय हम गंगा के किनारे क्रीड़ा करते थे तब तू मेरे स्नेह का भंडार थी....... किन्तु आज मैं तेरे बिना पाषाण
पूर्वभव का अनुराग / ८५