Book Title: Purvbhav Ka Anurag
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ सारसिका अभी तक वह उठ कर राजमार्ग की ओर देखने वातायन के पास गई 1 उसी समय सारसिका ने खंड में प्रवेश किया । सखी को विचारमग्न देखकर बोली- 'तरंग' !' 'ओह, सारसिका ! अब तक तू कहां गई थी ?' 'तेरे कार्य में ही गूंथी हुई फिर रही थी । ' 'मैं पूरी रात जागती रही यह तो तू जानती ही है ? परन्तु तेरा श्रम और मेरा जागरण सफल हो गया तेरा प्रियतम मुझे मिल गया ये शब्द सुनते ही जैसे सूर्य की प्रथम किरण का स्पर्श पाकर कमल खिल उठता है, वैसे ही तरंगलोला के वदन से सारी निराशा नष्ट हो गई और आशा की एक किरण फूट गई। वह तत्काल सारसिका से लिपट गई और बोली - 'सखी! तू मुझे पूरी बात बता मुझे केवल बहकाने के लिए तो नही कह रही है ?" 'तरंग ! क्या तू मुझे इस बात में असत्य मानती है ? ' 'सारसिका ! मुझे क्षमा कर चल, हम शयनकक्ष में चलते हैं रात कहकर तरंगलोला सारसिका को लेकर में जो बीता वह मुझे विस्तार से बता' शयनकक्ष में गई। सारसिका ने अथ से इति तक सारी बात कही और अन्त में कहा - 'फिर मैं तेरे पूर्वभव के पति का परिचय पाने उसके पीछे-पीछे गई। जब मुझे उनका पूरा परिचय प्राप्त हो गया तब मुझे बहुत प्रसन्नता हुई सखी! तू वास्तव में ही एक तो तेरे पूर्वभव क्या कहूं तेरे भाग्य का ! अत्यन्त भाग्यशालिनी है का पति अति सुन्दर है "शरद् के चन्द्र जैसा मनोहारी और अत्यंत स्नेहिल है।' 'अरे! मुझे उसके कुल, नाम आदि का परिचय तो बता ।' 'तरंग ! उतावली मत हो हर्ष के आवेश में मैं भूल जाती हूं" इसी अपार संपत्ति के यह अनेक जहाजी और वही तेरे पूर्वभव नगरी के सामुद्रिक व्यापारी धनदेव सेठ को तू जानती है ? स्वामी इनका सामुद्रिक व्यापार दूर-दूर देशों तक है बेड़ों का स्वामी है इनके पुत्र का नाम है पद्मदेव का प्रियतम है। घर के सभी सदस्य इनके प्रति अत्यंत स्नेह और प्रेम रखते हैं। इनकी मित्र मंडली भी सौम्य और शालीन है । मित्रमंडली में तुझे प्राप्त करने का विमर्श भी चला है। सब ज्ञात कर मैं वहां से मुड़ी और मार्गगत अपने घर पहुंची। वहां प्रात:कर्म से निवृत्त होकर सीधी तेरे पास आई हूं। बता, अब तुझे क्या जानना शेष है ? ' 'ओह! सखी! तूने मेरे पर महान् उपकार किया है 'क्या ?' 'वे मुझे प्राप्त करने का कब प्रयत्न करेंगे ?' ९० / पूर्वभव का अनुराग परन्तु

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148