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'नहीं स्वामिन् ! कभी-कभी मन में एक प्रश्न उभरता है और मन उदास हो जाता है।'
'तो फिर तू मुझे क्यों नहीं बताती?'
'आपसे क्या कहूं? मनुष्य को संतोष नहीं होता...... स्त्री का मन तो और अधिक दुर्बल हो जाता है।' सुनंदा ने कहा।
'किस बात में?' 'बात आपके वश की नहीं है। फिर मैं आपसे क्या कहूं?' ‘फिर भी।' कहकर सेठजी पत्नी का हाथ पकड़कर पलंग पर बैठ गए।
'भवन में आठ-आठ बालक क्रीड़ा करते हैं....... यह देखकर अपार हर्ष होता है.... परन्तु....." . 'क्या कोई ईर्ष्या करता है?'
'नहीं, परंतु पिता की लता होते हैं पुत्र और माता की लता होती है कन्या...... यदि एक कन्या होती तो अपने सुख के शिखर पर रत्न का कलश चढ़ जाता.....'
'ओह....।'
तत्काल सुनंदा द्वार बंद करने उस ओर चली गई। जब वह पलंग के पास आई तब सेठ ने कहा-'प्रिये! यह प्रश्न तो मुझे भी खटकता है. आज ही एक निमित्तक से मेरी इस विषय में चर्चा चली थी और उसने एक प्रयोग भी बताया
पत्नी आतुर नयनों से पति के सामने देखने लगी।
नगरसेठ बोला-'निमित्तक ने जो प्रयोग बताया है वह बहुत प्रभावशाली है। गंगा देवी की आराधना से पुत्र की प्राप्ति होती है और यमुना देवी की आराधना से पुत्री की प्राप्ति होती है। तीन मासपर्यन्त पति-पत्नी को आचाम्ल तप करना पड़ता है। प्रतिदिन यमुना देवी की मूर्ति के समक्ष एक माला फेरनी होती है। यमुना की आराधना का मंत्र भी सरल है और नब्बे दिनों तक मन, वचन-काया से संयम का पालन करना होता है। निमित्तक ने बताया कि नब्बे दिन की रात्रि में यमुना नदी की अधिष्ठात्री देवी यमुना स्वप्न में आकर अवश्य ही इच्छा पूरी करती है।'
'प्रयोग उत्तम है। कब से प्रारंभ करना है?'
'प्रातः ज्योतिषी से पूछकर शुभ मुहूर्त में इस प्रयोग को प्रारंभ करेंगे।' सेठ ने कहा।
सुनंदा को यह प्रयोग अच्छा लगा।
सातवें दिन सेठ-सेठानी ने यमुना की आराधना प्रारंभ कर दी। यमुना की आराधना!
पूर्वभव का अनुराग / ५७